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________________ 44 / आर्हती-दृष्टि ईहापोह-मार्गणा-गवेषणा मेघकुमार को ईहा (पूर्वस्मृति के लिए मानसिक चेष्टा) अपोह क्या मैं हाथी था? इस प्रकार अतीत का चिन्तन करते-करते गवेषणा प्रारम्भ की एवं उसे जाति-स्मृति हो गई। जाति-स्मृति सनिमित्तक एवं अनिमित्तक उभय प्रकार की होती है। तदावरणीय कर्म के क्षयोपशम से प्राप्त होने वाली जाति स्मृति अनिमित्तक एवं बाह्य निमित्त के द्वारा प्राप्त होने वाली सनिमित्तक जाति-स्मृति है। जाति-स्मृति सबको क्यों नहीं? जाति-स्मृति सबको क्यों नहीं होती? इस विषय में तन्दुल वेयालिय प्रकीर्णक में कारण निर्दिष्ट करते हुए कहा-जन्म और मृत्यु के समय जो दुःख होता है, उस दुःख से सम्मूढ होने के कारण व्यक्ति को पूर्वजन्म की स्मृति नहीं रहती। जायमाणस्स जं दुक्खं मरमाणस्स वा पुणो। तेण दुक्खेण समूढो जाइं सरइ बप्पणो॥ मूर्छा में स्मृति लुप्त हो जाती है, इसलिए पूर्वजन्म की स्मृति नहीं रहती तथा विशिष्ट निमित्त के बिना पूर्वजन्म के विद्यमान संस्कारों का भी साक्षात्कार नहीं होता, यह भी स्मृति के न होने का कारण है। जाति स्मृति से लाभ _जाति-स्मृति से धर्म के प्रति सहज श्रद्धा और संवेग में सहज वृद्धि होती है। संसार-चक्र का उसे साक्षात्कार हो जाता है। आत्मा के त्रैकालिक अस्तित्व में उसे कोई सन्देह नहीं रहता। मुमुक्षा भाव एवं अनासक्ति का सहज विकास होता है। पुनर्जन्म का सिद्धान्त दार्शनिक जगत् में तो सहज प्रतिष्ठित ही है। वैज्ञानिक शोध के निष्कर्षों के आधार पर उसकी स्व प्रतिष्ठा सम्भावित है।
SR No.004411
Book TitleAarhati Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year1998
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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