________________ 42 / आर्हती-दृष्टि किन्तु मृत्यु के बाद पुनः जन्म होगा, यह प्रत्यक्ष का विषय नहीं है। अतः इस विषय में सन्देह का अवकाश है / इस सन्देह के परिप्रेक्ष्य में कुछ दार्शनिक (चार्वाक्.आदि) इस जन्म से पूर्व किसी जन्म को स्वीकार ही नहीं करते। जन्म ही नहीं तो मृत्यु का अभाव तो स्वतः सिद्ध है। कुछ तत्त्वदर्शियों ने इसका अभ्यास किया और जन्म एवं मृत्यु का साक्षात्कार किया। उन्होंने उद्घोषणा की कि पूर्वजन्म और पुनर्जन्म होता है एवं उसका ज्ञान किया जा सकता है। पूर्वजन्म की ज्ञप्ति के हेतु पूर्वजन्म एवं पुनर्जन्म का ज्ञान शक्य है / भगवान् महावीर ने पूर्वजन्म को जानने के तीन हेतु बतलाए हैं. (1) स्व-स्मृति-स्वतः ही स्वयं को पूर्वजन्म की स्मृति हो जाना / अनेक बच्चों को सहज ही पूर्वजन्म की स्मृति होती है / परा-मनोवैज्ञानिकों ने अनेकों घटनाओं का संग्रह किया है। उन घटनाओं की सत्यता प्रमाणित है। (2) पर-व्याकरण—किसी आप्त के साथ व्याकरण अर्थात् प्रश्नोत्तरपूर्वक मनन कर कोई उस पूर्वजन्म के ज्ञान को प्राप्त करता है / मेघकुमार को महावीर ने जाति-स्मृति करवाई थी। . (3) अन्य के पास श्रवण बिना पूछे ही किसी अतिशय ज्ञानी के द्वारा स्वतः ही निरुपित तथ्य को सुनकर कोई पूर्वजन्म का संज्ञान कर लेता है। पुनर्जन्म की सिद्धि अस्तित्ववादी दार्शनिकों ने पुनर्जन्म की पुष्टि के लिए अनेक युक्तियां प्रस्तुत की हैं / जो इन्द्रिय प्रत्यक्ष का विषय नहीं होता उसकी सिद्धि अनुमान आदि प्रमाणों से की जाती है / पुनर्जन्म भी प्रत्यक्षातीत है अतः उसकी सिद्धि भी तार्किक ग्रन्थों में तर्क से हुई है। नवजात शिशु में हर्ष, भय, शोक आदि संवेग देखे जाते हैं, उनका कारण पूर्वजन्म ही है। ___ पूर्वजन्म में किए हुए आहार के संस्कार के कारण ही नवजात शिशु स्तनपान .. करने लगता है। सभी प्राणियों में जिजीविषा होती है, मृत्यु से भय होता है / जातमात्र कृमि में भी मरण-त्रास देखा जाता है / मरण-त्रास अज्ञानी की भांति ज्ञानी में भी देखा जाता है—'स्वरसवाही विदुषोऽपि तथा रुढोऽभिनिवेशः' यह मरणत्रास भी पूर्वजन्म की सिद्धि का पुष्ट प्रमाण है / ऐसे ही अनेकों हेतुओं के द्वारा पुनर्जन्म की सिद्धि की गई है।