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________________ आत्मा एवं पुनर्जन्म / 41 क्षेत्र में भी उस पर विमर्श हो रहा है। सामान्यतः पदार्थ की ठोस, द्रव, गैस एवं प्लाज्मा ये चार अवस्थाएं होती हैं। सोवियत रूस के वैज्ञानिक श्री वी. एस. निश्चेको ने पदार्थ की पांचवीं अवस्था की खोज की है, जो जैव-प्लाज्मा (प्रोटोप्लाज्मा, बायोप्लाज्मा) कहलाती है। निश्चेको के अनुसार जैव-प्लाज्मा में स्वतन्त्र इलेक्ट्रॉन और प्रोटोन होते हैं जिनका नाभिक से कोई सम्बन्ध नहीं होता। इनकी गति बहुत तीव्र होती है। यह मानव की सुषुम्ना नाड़ी में एकत्रित रहता है। प्रोटो-प्लाज्मा से सम्बन्धित अनेकों तथ्य इन्होंने प्रस्तुत किए हैं। प्रोटोप्लाज्मा से सम्बन्धित निष्कर्षों के आधार पर कहा जा सकता है कि भारत में प्रचलित सूक्ष्म शरीर की अवधारणा का जैव-प्लाज्मा से बहुत साम्य है। प्रोटो प्लाज्मा की तुलना प्राण तत्त्व से की जा सकती है। वैज्ञानिकों के अनुसार प्रोटो-प्लाज्मा शरीर की कोशिकाओं में रहता है। मरने के बाद यह तत्त्व शरीर से अलग हो जाता है। वही तत्त्व जीन में परिवर्तित हो जाता है / बच्चा जब जन्म लेता है, तब बायोप्लाज्मा पुनः जन्म ले लेता है। शरीर जल जाता है, प्रोटोप्लाज्मा नहीं जलता यह आकाश में व्याप्त हो जाता है / जैन दृष्टि के अनुसार इसे सूक्ष्म शरीर कहा जा सकता है। सूक्ष्म शरीर चतुःस्पर्शी होने से द्रव, गैस, ठोस आदि रूप नहीं होता। यह सूक्ष्म होता है / सूक्ष्म शरीर के संसर्ग से युक्त आत्मा ही पुनर्जन्म लेती है। प्रोटोप्लाज्मा की अवधारणा से आत्मा की अमरता एवं पुनर्जन्म ये दोनों ही सिद्धान्त स्पष्ट होते हैं / वैज्ञानिकों के अनुसार जब प्रोटो-प्लाज्मा का कणं स्मृति पटल पर जागृत हो जाता है तब शिशु को अपने पूर्वजन्म की घटनाएं याद आने लगती हैं। जैन दर्शन के अनुसार पूर्वजन्म की स्मृति सूक्ष्म शरीर में संचित रहती है और निमित्त प्राप्त कर उद्भूत हो जाती है। परामनोविज्ञान एवं पुनर्जन्म ___ परा-मनोविज्ञान के क्षेत्र में पुनर्जन्म पर बहुत अन्वेषण हो रहा है / परा-मनोविज्ञान विज्ञान की ही एक शाखा है। इसमें पुनर्जन्म आदि सिद्धान्तों का अन्वेषण निरन्तर गतिशील है / योरोप एवं अमेरिका जैसे नितान्त आधुनिक एवं मशीनी देश पुनर्जन्म का आधार खोजने में लगे है। वर्जीनिया विश्व-विद्यालय के परा-मनोविज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉ. ईआन स्टीवेन्सन ने पूर्वजन्म की स्मृति सम्बन्धी अनेक तथ्यों का आकलन किया है। अपनी अनवरत शोध के पश्चात् अपना स्पष्ट मत प्रस्तुत करते हुए कहा है कि पुनर्जन्म सम्बन्धी अवधारणा यथार्थ है। . जन्म एवं मृत्यु के अस्तित्व में किसी को सन्देह नहीं है। ये प्रत्यक्ष घटनाएं हैं
SR No.004411
Book TitleAarhati Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year1998
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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