________________ आत्मा एवं पुनर्जन्म / 39 जात्यायुर्भोगः।' जब तक क्लेश रहते हैं तब तक जाति, आयु एवं भोग के रूप में . उनके विपाक को भोगना पड़ता है। न्याय-वैशेषिक ये भी आत्मा को त्रिकालवर्ती मानते हैं / आत्मा के नित्य होने से जन्मान्तर की सिद्धि होती है। पूर्वकृत कर्म भोग के लिए आत्मा को पुनर्जन्म करना पड़ता है'पूर्वकृतफलानुभवनात् तदुत्पतिः।' अदृष्ट के कारण जीव संसार में परिभ्रमण करता रहता है। मीमांसा ___ यज्ञ आदि कर्मकाण्ड में विश्वास करनेवाला मीमांसा दर्शन भी पुनर्जन्म को स्वीकार करता है। आत्मा, परलोक आदि में उसका विश्वास है / यज्ञ से अदृष्ट नाम का तत्त्व पैदा होता है और वह सम्पूर्ण जीवन व्यवस्था का नियामक होता है। गीता . . गीता को सब उपनिषदों का सार कहा गया है। भारतीय संस्कृति का गीता महिमा-मण्डित ग्रन्थ है। उसमें पुनर्जन्म का तत्त्व स्पष्ट रूप से प्रतिपादित हआ है। ग्रन्थकार कहते हैं—'जातस्य हि ध्रुवं मृत्यु ध्रुवं जन्म मृतस्य च / ' जो जन्म लेता है उसकी मृत्यु एवं मृत का जन्म निश्चित रूप से होता है। जैसे मनुष्य पुराने कपड़ों को छोड़कर नवीन वस्त्र धारण करता है, वैसे ही यह आत्मा पुराने शरीर को त्यागकर नया शरीर धारण कर लेती है। . . वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि। ... तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही॥ जिस प्रकार इस शरीर में बाल्य, यौवन एवं बुढ़ापा आता है, वैसे ही आत्मा को देहान्तर की प्राप्ति होती है। धीर पुरुष वैसी स्थिति में मोहित नहीं होता। बौद्ध ... बौद्ध दर्शन को अनात्मवादी माना जाता है। क्योंकि उसने आत्मा की स्वतंत्र सत्ता न मानकर सन्तति प्रवाह के रूप में उसका अस्तित्व स्वीकार किया है / इस दर्शन में भी पुनर्जन्म का सिद्धान्त स्वीकृत है / भगवान् बुद्ध ने अपने पैर में चुभने वाले कांटें को पूर्वजन्म में किए हुए प्राणीवध का विपाक माना है. इत एकनवतिकल्पे शक्त्या मे पुरुषो हतः। तेन कर्म विपाकेन पादे विद्धोऽस्मि भिक्षवः / /