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________________ आत्मा एवं पुनर्जन्म आत्मा भारतीय दर्शन जगत् का प्राण तत्त्व है / आत्मा के अस्तित्व, उसके स्वरूप आदि के बारे में भारतीय मनीषियों ने प्रभूत चिन्तन किया है / पाश्चात्य दर्शन परम्परा में भी आत्मा पर विमर्श हुआ है / आत्मा को केन्द्र में रखकर दो प्रकार की विचारधाराएं विकसित हुई / एक वह जो आत्मा के त्रैकालिक अस्तित्व को स्वीकार करती थी तथा अन्य आत्म-अस्तित्व को वार्तमानिक ही मानती थी। - चार्वाक् के अतिरिक्त समस्त भारतीय चिन्तकों ने आत्मा के त्रैकालिक अस्तित्व को स्वीकार किया है / अनात्मवादी कहलाने वाले बौद्ध दर्शन ने भी चित्तसन्तति प्रवाह को स्वीकृति देकर इसी चिन्तन का परोक्षतः समर्थन किया है / आत्मा के कालिक अस्तित्व को स्वीकार करने वाली दार्शनिक परम्पराओं ने प्रत्यक्ष, अनुमान आदि प्रमाणों के द्वारा आत्मा के ढ़कालिक अस्तित्व को स्थापित करने का सफल भगीरथ प्रयास किया तथा पुनर्जन्म को भी आत्म-त्रैकालिकता के हेतु रूप में प्रस्तुत किया है। 'प्रेत्यसद्भावाच्च' अर्थात् पुनर्जन्म का सद्भाव होने से आत्मा की त्रैकालिकता सिद्ध है। दार्शनिक जगत् में आत्मवाद एवं पुनर्जन्म के सन्दर्भ में तीन मान्यताएं प्रचलित हैं- . ___(1) आत्मा है, पुनर्जन्म नहीं है। (2) आत्मा एवं पुनर्जन्म दोनों ही नहीं हैं। (3) आत्मा एवं पुनर्जन्म दोनों ही हैं। ईसाई-इस्लाम धर्म-आत्मा की सत्ता को तो स्वीकार करते हैं किन्तु क्रमिक पुनर्जन्म की सत्ता स्वीकार नहीं करते। . . चार्वाक् दर्शन आत्मा, परमात्मा, पुनर्जन्म आदि किसी भी अतीन्द्रिय सत्ता को स्वीकृति नहीं देता। ___ अन्य भारतीय दर्शन आत्मा, परमात्मा एवं पुनर्जन्म इन तीनों की सत्ता स्वीकार करते हैं। आत्मा की इनके अनुसार त्रैकालिक सत्ता है। आचारांग में कहा गया. 'जस्स नत्थि पुरा पच्छा मज्झे तत्थ कओ सिआ' जिसका पूर्व एवं पश्चात् नहीं - होता उसका मध्य भी नहीं होता / आत्मा वर्तमान में है, इससे स्पष्ट होता है कि आत्मा .. का पूर्व में अस्तित्व था तथा भविष्य में होगा। आत्मा की त्रैकालिक सत्ता पूर्वजन्म
SR No.004411
Book TitleAarhati Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year1998
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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