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________________ 36 / आर्हती-दृष्टि निकलते ही वह छाया गिलास से निकली और दीवार की ओर बढ़ी। उस दीवार पर रोडापसिन नामक पदार्थ का लेप किया गया था, इस मसाले का प्रयोग करने के बाद ही दीवार पर ये किरणें स्पष्ट दिखाई देती हैं / यह छाया कुछ दूर तक ऊपर तक जाती दिखाई दी। उसके पश्चात् उसका कहीं कुछ पता नहीं चला। डॉ. गेट्स ने इस छाया की सही स्थिति जानने के लिए गैलवानोमीटर से उन किरणों की शक्ति तथा मानव शरीर में संचालित विद्युत तरंगों की शक्ति को मापा और उन्हें लगा कि दीवार पर पड़नेवाली प्रकाश किरणों की अपेक्षा शरीर की ताप शक्ति अधिक होती है। गेट्स के अनुसार यही विद्युत शक्ति आत्मा की प्रकाश शक्ति है। .. डॉ. हेनरी वराहुक ने जो फ्रांस के रहनेवाले हैं। अपने मरणासन्न बच्चे पर ऐसे प्रयोग किये हैं। इस तरह लंदन के प्रसिद्ध डॉ. डब्ल्यू. जे. किल्लर ने अपनी पुस्तक 'दि ह्यमन एटमोस्फियर' में भी अपने कई प्रयोगों का वर्णन किया है, जो उन्हें रोगियों की जांच करते समय प्राप्त हुए थे। वे निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि मानव देह में एक प्रकाशपुञ्ज का अस्तित्व अवश्य है, जो मृत्यु के पश्चात् भी यथावत् रहता है। __ वैज्ञानिकों के इन प्रयोगों का सार यह कि शरीर में एक प्रकाशपुञ्ज का अस्तित्व है और वही आत्मतत्त्व है / जैन दर्शन के अनुसार आत्मा का स्वरूप तो अमूर्त है किन्तु संसारी अवस्था में वह सर्वथा अमूर्त नहीं हो सकती। क्योंकि उसके साथ अनादिकाल से कार्मण और तैजस शरीर का योग है / ये दोनों शरीर पौद्गलिक अर्थात् मूर्त हैं / अतः इनके संयोग से संसारस्थ आत्मा भी कथंचिद् मूर्त है। वैज्ञानिकों को प्रयोग काल में शरीर से निकलते हुए प्रकाशपुञ्ज का आभास हुआ है शायद वही तैजस कार्मण शरीर युक्त आत्मा है / तैजस शरीर तेजोमय है / आत्मा के अमूर्त होने पर भी उसके योग से प्रकाशपुञ्ज की अनुभूति होना असम्भव नहीं है। -
SR No.004411
Book TitleAarhati Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year1998
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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