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________________ 372 / आर्हती-दृष्टि नहीं है। यदि दोनों का नित्य सम्बन्ध नहीं है। तो एक से दूसरे का अनुमान करना निश्चयात्मक नहीं हो सकता। 3. चार्वाक् का मन्तव्य है कि यदि अनुमान प्रमाण होता तो सब अनुमान फममेबलों का पिटाई एल दी निकलना चाहिए किन्तु सभी दार्शनिकों का अलग-अलग निष्कर्ष प्रमेय के क्षेत्र में प्रसिद्ध है। अतः अनुमान प्रमाण नहीं होता। 4. स्वर्ग-नरक आदि परोक्ष पदार्थों का अनुमान कैसे किया जा सकता है। अनुमान निश्चयात्मक नहीं होता, मात्र सम्भावना होता है। यह प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर होता है कि कृषक सम्भावना के आधार पर ही कृषि-कार्य में प्रवृत्त होता है। कभी-कभी इसी सम्भावनात्मक ज्ञान को निश्चयात्मक मानकर मनुष्य कार्यों में प्रवृत्त होता है। ऐसी दशा में सम्भावनात्मक ज्ञान में ही निश्चयात्मकता का आरोप होता है। अतः प्रत्यक्ष ही निश्चयात्मक ज्ञान करवाने में समर्थ है। उसके अतिरिक्त अनुमान प्रमाण की यथार्थता ही नहीं हो सकती। आक्षेप परिहार चार्वाक् दर्शन को प्रत्यक्ष प्रमाणवादी कहा जाता है। उसकी ज्ञान-मीमांसा मात्र प्रत्यक्ष आधारित है। किन्तु उसे भी अनुमान प्रमाण को स्वीकार करना होगा। प्रमाण और अप्रमाण की व्यवस्था, स्वर्ग-नरक आदि पदार्थों के निषेध के लिए एवं अन्य पुरुष की बुद्धि के ज्ञान के लिए प्रत्यक्ष के अतिरिक्त प्रमाण को उन्हें स्वीकार करना ही होगा। चार्वाक् प्रत्यक्ष को प्रमाण एवं अन्य को अप्रमाण मानता है / इसका बोध प्रत्यक्ष से तो हो नहीं सकता क्योंकि वह सम्बद्ध वर्तमान का ही ग्राहक होता है / वह देशान्तर की सामर्थ्य नहीं रखता। - अनुमान प्रमाण के बिना चार्वाक् अपनी प्रतीति में अनुभूत प्रत्यक्ष का प्रामाण्य अन्य पुरुषों को प्रतिपादित भी नहीं कर सकते, क्योंकि अन्य पुरुषों की चित्तवृत्ति का प्रत्यक्ष प्रमाण द्वारा अवबोध ही नहीं हो सकता ।यदि कहा जाए कि चेष्टा विशेष के द्वारा उनकी विचारधारा का अवगम किया जा सकता है, ऐसा स्वीकार करने से कार्य द्वारा कारण का अनुमान ही स्वीकृत हो गया है। स्वर्ग, परलोक आदि अतीन्द्रिय पदार्थों की प्रत्यक्ष द्वारा उपलब्धि न हो सकने
SR No.004411
Book TitleAarhati Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year1998
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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