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________________ परोक्ष प्रमाण की प्रामाणिकता / 373 के कारण जो प्रतिषेध किया जाता है / वह भी निषेध मुख से अनुपलब्धि हेतु से ही सम्पन्न होने से अनुमान ही है। प्रत्यक्ष द्वारा यह कार्य सम्पादित नहीं हो सकता, अतः अतीन्द्रिय पदार्थों के निषेध के लिए प्रमाणान्तर अनुमान की स्वीकृति अपरिहार्य है। प्रत्यक्ष निर्दोष ज्ञान का जनक होता है / अतः चार्वाक् उसे प्रमाण मानता है / इसी हेतु के आधार पर अनुमान को भी प्रमाण स्वीकार करने में उसे आपत्ति नहीं होनी चाहिए क्योंकि अनुमान आदि प्रमाणों के द्वारा असंदिग्ध यथार्थज्ञान उत्पन्न होता है। ___ अनुमान कभी-कभी अयथार्थ होता है। यह स्थिति तो प्रत्यक्ष प्रमाण में भी है। वह भी कदाचित् अयथार्थ ज्ञान को पैदा करता है। यदि उसको प्रत्यक्षाभास कहा जाता है, जो अयथार्थ होता है, उसे अनुमानाभास ही कहा जाता है। अनुमान प्रमाण के अभाव में प्रत्यक्ष प्रमाण भी सिद्ध नहीं हो सकता, क्योंकि प्रत्यक्ष प्रमाण की साधनभूत इन्द्रियां स्वयं अतीन्द्रिय है जो अपनी सिद्धि में अनुमान की अपेक्षा रखती है / यदि शरीर में स्थित उन-उन इन्द्रियों के स्थानों को ही इन्द्रियां मान ली जाए और अतीन्द्रिय कल्पना को स्वीकार नहीं किया जाए, तब भी उन स्थानात्मक इन्द्रियों की प्रमाणता भी अनुमान के बिना सिद्ध नहीं हो सकती / 25 . अनुमान का निराकरण करने के लिए भी अनुमान की ही आवश्यकता होती है। जैसे दर्शन के किसी सिद्धान्त का निराकरण अथवा स्वीकरण दार्शनिक सिद्धान्त के प्रस्तुतीकरण से ही हो सकता है। जैसा कि डॉ. सतकड़ी मुखर्जी ने कहा है : "Even the man, who decries philosophy and condemns its culture, can hope to make out his case by only having recourse to philosophy. The denunciation of philosophy itself result in the setting up of a rival philosophy. *". उपर्युक्त तथ्यों से स्पष्ट है चाहे या अनचाहे चार्वाक् को प्रत्यक्षके अतिरिक्त अन्य प्रमाण को स्वीकृत करना ही होगा। भले वह उसका नामकरण कुछ भी करे / .' चार्वाक् ने जो अनुमान के सन्दर्भ में आपत्तियां प्रस्तुत की हैं, उन पर भी भारतीय चिन्तकों ने विमर्श किया है। अनुमान का आधार व्याप्ति होता है। उसका ग्रहण अन्वय-व्यतिरेक हेतु रूप तर्क प्रमाण से हो जाता है / तर्क नियमों का अन्वेषण करती है / नियम निश्चित होते हैं / अतः उन नियमों के द्वारा व्याप्ति का ग्रहण निश्चित रूप से हो जाता है। कहीं नियम यदि मिथ्या होते हैं तो वहां अनुमानाभास.भी सम्भव है व्याप्ति ग्रहण, अनुमान ये सब परोक्ष प्रमाण के अन्तर्गत स्वीकृत है अतः परोक्ष की भी अपनी सीमाएं हैं, उन सीमाओं में ही व्याप्ति, अनुमान आदि की यथार्थता पर चिन्तन करना आवश्यक है।
SR No.004411
Book TitleAarhati Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year1998
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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