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________________ परोक्ष प्रमाण की प्रामाणिकता / 371 'नया ज्ञान उपलब्ध होने पर नियम भी नए बन जाते हैं। इसलिए व्याप्ति की पृष्ठभूमि में त्रैकालिक बोध नहीं होता / द्वैकालिक फिर भी हो सकता है। भविष्य की बात भविष्य पर छोड़ देनी चाहिए / इन्द्रिय और मानसज्ञान की एक सीमा है। इसलिए उन पर हम एक सीमा तक ही विश्वास कर सकते हैं। कालिक-बोध अतीन्द्रिय ज्ञान का कार्य है और वह प्रत्यक्ष है, इसलिए वह अनुमान की सीमा से परे है।२२ __ आचार्य महाप्रज्ञजी का यह वक्तव्य तर्कसंगत ही प्रतीत होता है क्योंकि यदि त्रैकालिक ज्ञान किसी को हो जाए तो वह सर्वज्ञ ही हो जाता है / यद्यपि तार्किकों का मानना है कि व्याप्ति ग्रहणकाल में प्रमाता योगी जैसा हो जाता है।" तथापि उसका ज्ञान सीमित ही होगा। सर्वज्ञ जैसे त्रिकाल का ज्ञान करता है। वैसा त्रैकालिक ज्ञान व्याप्ति से सम्भव नहीं है / अतः व्याप्ति ग्रहण की त्रैकालिक शर्त सापेक्ष ही है। / यद्यपि यह यथार्थ है कि अनुमान प्रमाण के अभाव में हम व्यवहार जगत् के कार्य सम्पादन में भी समर्थ नहीं हो सकते / इन्द्रिय प्रत्यक्ष का क्षेत्र बहत सीमित है अतः अनुमान प्रमाण की अनिवार्य अपेक्षा है। इन्द्रिय ज्ञान की परिधि में आचार मीमांसीय, तत्त्व-मीमांसीय प्रश्न अनुत्तरित ही रहते हैं। उनके सम्यक समाधान के लिए परोक्ष प्रमाणान्तर्गत अनुमान प्रमाण के अस्तित्व की सहज स्वीकृति दर्शन जगत् में है। अनुमान पर आक्षेप भारतीय दर्शन में चार्वाक् के अलावा सभी दार्शनिकों ने अनुमान की प्रामाणिकता स्वीकार की है। चार्वाक् प्रत्यक्ष प्रमाण के अतिरिक्त किसी भी प्रमाण के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करता। इसी आधार पर दृश्य जगत् के अलावा अन्य किसी भी परोक्ष पदार्थ का अस्तित्व वे स्वीकार नहीं करते हैं। . .1. चार्वाक् का कहना है कि अनुमान प्रमाण का आधार व्याप्ति है एवं उसका निश्चय नहीं हो सकता। कोई व्यक्ति भूत, वर्तमान एवं भविष्य के उदाहरणों का निश्चय नहीं कर सकता है। व्याप्ति के निश्चित न होने पर अनुमान भी निश्चित नहीं होगा। 2. व्याप्ति या साहचर्य सम्बन्ध को नित्य तथा अनौपाधिक सम्बन्ध कहा जाता है। दो वस्तुओं में सम्बन्ध तभी हो सकता है, जब उनमें विपरीत " रूप न दिखलाई पड़े। धूम अग्नि अनौपाधिक सम्बन्ध नहीं है। धूम तभी निकलता है जब लकड़ी गीली हो, गर्म लोहे से धूम नहीं निकलता, गीली लकड़ी का होना उपाधि है। अतः धूम अग्नि का सम्बन्ध नित्य
SR No.004411
Book TitleAarhati Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year1998
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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