________________ परोक्ष प्रमाण की प्रामाणिकता / 369 होता है। और परार्थानुमान शब्दात्मक होता है / शब्दात्मक होने के कारण वह प्रमाण नहीं हो सकता / परार्थानुमान स्वार्थानुमान का कारण है। कारण को उपचार से कार्य मानकर परार्थानुमान को प्रमाण माना जाता है। ज्ञान के विषय में स्वार्थ और परार्थ की धारणा जैनों में प्राचीनकाल से है / किन्तु अनुमान के स्वार्थ और परार्थ ये दो प्रकार नैयायिक और बौद्ध-परम्परा से गृहीत हैं, ऐसा आचार्य महाप्रज्ञजी का मन्तव्य है।" अनुमान की व्यापकता प्रत्यक्ष प्रमाण सम्बद्ध एवं वर्तमानवी वस्तु का ही ग्राहक होता है / किन्तु अनुमान का क्षेत्र विशाल है। अनुमान सम्बद्ध असम्बद्ध, विप्रकट, सूक्ष्म, अतीन्द्रिय तथा भूत, भविष्य और वर्तमान सभी पदार्थों का बोध करने का सामर्थ्य रखता है, इसलिए यह प्रत्यक्ष पर आधारित होने पर भी उससे अधिक व्यापक है। अनुमान के अवयव ___ न्यायशास्त्र में अनुमान के पाँच अवयवों का उल्लेख प्राप्त होता है प्रतिज्ञा, हेतु, दृष्टान्त, उपनय एवं निगमन / जैन आचार्यों ने प्रत्येक विषय पर अनेकान्त दृष्टि से विचार किया है। अनुमान के अवयव प्रयोग के सन्दर्भ में अनेकान्त दृष्टि का प्रयोग स्पष्ट प्रतिभासित हो जाता है। प्राचीनकाल में दृष्टान्त का प्रयोग प्रचुरता से किया जाता था। प्रबुद्ध श्रोता के लिए हेतु का भी प्रयोग मान्य था। नियुक्तिकार भद्रबाहु ने लिखा है-जिनवचन स्वयंसिद्ध है, फिर भी उसे समझाने के लिए अपरिणत श्रोता के लिए उदाहरण का प्रयोग करना चाहिए। श्रोता के लिए हेतु का प्रयोग भी क्वचित् विहित है। ___नियुक्तिकार ने पांच तथा दस अवयवों के प्रयोग का निर्देश दिया है। आचार्य सिद्धसेन ने पक्ष, हेतु, दृष्टान्त–इन तीन अवयवों के प्रयोग की चर्चा की है। सामान्यतया प्रायः सभी तार्किकों ने स्वार्थानुमान में प्रतिज्ञा और हेतु तथा परार्थानुमान में उन दो के अतिरिक्त मन्दमति को व्युत्पन्न करने के लिए दृष्टान्त, उपनय और निगमन इन अवयवों के प्रयोग को स्वीकृत किया है / वादिदेव सूरी ने बौद्धों की भांति केवल हेतु के प्रयोग का समर्थन किया है। हेतु का स्वरुप ... बौद्धों ने हेतु को त्रैरूप्य माना है। पक्षधर्मत्व, सपक्षसत्व एवं विपक्षासत्व इन लक्षणों से युक्त ही हेतु ही अपने साध्य का साधक होता है। नैयायिकों ने हेतु का