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________________ प्रमाणत्वा 350 / आर्हती-दृष्टि शान्तरक्षित आदि के कथनों से अवगत होता है / कि सांख्य प्रामाण्य एवं अप्रामाण्य को स्वतः मानता थाप्रमाणत्वाप्रमाणत्वे स्वत: सांख्या समाश्रिताः / सर्वद. जैमि, पृ. 279. . . कुमारिल्ल, शान्तरक्षित आदि आचार्य के ग्रन्थों में एक ऐसे मत का भी उल्लेख है जो मीमांसक से बिलकुल विपरीत है / वह अप्रामाण्य को स्वतः तथा प्रामाण्य को परतः स्वीकार करता है। सर्वदर्शन संग्रह में 'सौगताश्चरमं स्वतः' इस पक्ष को बौद्धपक्ष के रूप में वर्णित किया है। किन्तु तत्त्वसंग्रह में शान्तरक्षित ने जो बौद्धपक्ष स्थापित किया है वह इससे सर्वथा भिन्न है / सम्भवतः सर्वदर्शन-संग्रह में निर्दिष्ट बौद्धपक्ष किसी अन्य बौद्ध विशेष का रहा हो / शान्तरक्षित ने बौद्धपक्ष को प्रकट करते हुए कहा है-'प्रामाण्य अप्रामाण्य उभय स्वतः, परत: अथवा अप्रामाण्य.परतः प्रामाण्य स्वत: या परत: अप्रामाण्य स्वतः' ये चारों ही पक्ष नियम वाले हैं अतः बौद्धपक्ष नहीं है / बौद्धपक्ष अनियमवादी है अर्थात् प्रामाण्य और अप्रामाण्य दोनों को अभ्यासदशा में स्वतः एवं अनभ्यास दशा में परतः मानते हैं। जैन मान्यता शान्तरक्षित कथित बौद्धपक्ष के समान है। अभ्यास दशा में दोनों स्वतः तथा अनभ्यास अवस्था में परतः होते हैं। हेमचन्द्राचार्य ने कहा—'प्रामाण्यनिश्चयः स्वतः परतो वा।' प्रामाण्य का निश्चय अभ्यास दशा में स्वतः तथा अनभ्यास अवस्था में परतः होता है। आचार्य हेमचन्द्र ने अपने सूत्र में प्रामाण्य एवं अप्रामाण्य दोनों का कथन नहीं किया है। उन्होंने परीक्षामुख की तरह केवल प्रामाण्य के स्वतः-परतः का निर्देश किया है किन्तु देवसूरि ने अपने 'प्रमाणनयतत्त्वलोक' में इस सन्दर्भ को प्रस्तुत करते हुए कहा तदुभयमुत्पत्तौ परतः एव ज्ञप्तौ स्वतः परतश्चेति / प्रामाण्य और अप्रामाण्य की उत्पत्ति परतः होती है। ज्ञानोत्पादक सामग्री में मिलनेवाले गुण और दोष क्रमशः प्रामाण्य एवं अप्रामाण्य के निमित्त बनते हैं। यदि ये दोनों निर्विशेषण सामग्री से पैदा होते तो इनकी उत्पत्ति स्वतः मानी जा सकती थी किन्तु ये दोनों सविशेषण सामग्री से पैदा होते हैं, अतः इनकी उत्पत्ति परतः ही होती .
SR No.004411
Book TitleAarhati Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year1998
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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