________________ 342 / आर्हती-दृष्टि अनुयोग-द्वार के कथन के विरुद्ध नहीं होगा, क्योंकि अनुयोग-द्वार अंग-बाह्य के भेद करते समय पहले ही आवश्यक व्यतिरिक्त के कालिक सूत्रों को पृथक् कर देता है, जबकि नन्दी आवश्यक व्यतिरिक्त के ही कालिक एवं उत्कालिक ये दो भेद करती है। अतः दोनों के तात्पर्यार्थ में कोई विरोध नहीं है। दूसरा महत्त्वपूर्ण प्रश्न है कि आवश्यक सूत्र कालिक है या उत्कालिक / नन्दी ने आवश्यक को कालिक एवं उत्कालिक किसी भी विभाग में समाविष्ट नहीं किया है। अनुयोग-द्वार में आवश्यक के उत्कालिक होने का स्पष्ट उल्लेख प्राप्त है / प्रश्न हो सकता है कि नन्दी ने इसको उत्कालिक क्यों नहीं कहा? किन्तु जरूरी नहीं है कि सबके बारे में सम्पूर्ण वक्तव्य प्राप्त हो / अपनी विवक्षा दृष्टि से ही वक्तव्य कहे जाते हैं। नन्दी की यह विवक्षा नहीं होगी ।नन्दीकार को यह कथन महत्त्वपूर्ण नहीं लगा होगा। कुछ भी हो, आवश्यक के उत्कालिक होने का स्पष्ट निर्देश अनुयोग में प्राप्त है जो समीचीन है / जयाचार्य ने उत्तराध्ययन के २६वें अध्ययन की जोड़ में आवश्यक सूत्र को कालिक एवं उत्कालिक से भिन्न कहा है। नन्दी एवं अनुयोग-द्वार दोनों के आगम विभाग को संयोजित करने पर कालिक एवं उत्कालिक से सम्बन्धित एक परिपूर्ण आगम विभाग हमें उपलब्ध होता है जो तालिका से स्पष्ट है। .. श्रुतज्ञान / अंग प्रविष्ट अंग बाह्य कालिक उत्कालिक कालिक उत्कालिक ११अंग दृष्टिवाद उत्तराध्ययन, जीवाभिगम दशाश्रुतस्कन्ध, चन्द्रप्रज्ञप्ति, जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति आदि आवश्यक व्यतिरिक्त आवश्यक दशवैकालिक, ओपपातिक, छह विभागवाला राजप्रश्नीय आदि