________________ कालिक एवं उत्कालिक सूत्र / 343 संदर्भ .. 1. तं समासओ दुविहं-अंगपविटुं अंगबाहिरं च। नन्दीसूत्र, 73 2. पादुदुर्ग जंघोरु गातदुगद्धं तु दो य बाहूओ।। गीवा सिरं च पुरिसो बारसअंगो सुतविसिट्ठो॥ नंदी चूर्णि, 56 3. यदिह दिवस-निशि प्रथम-पश्चिमपौरुषीद्वयं पठ्यते तत् कालेन निर्वतं कालिकम्। __ . यत् पुनः कालवेलावर्ज पठ्यते तदुत्कालिकम् // नन्दी वृत्ति, पृ.७० 4. मूढ़नइयं सुयं कालियं तु ण णया समोयरंति इहं।। अहुत्ते समोयारो नत्थि पहुत्ते समोयारो // आ. नि. गा, 762 5. आ नि. गा, 773 / 6. विशेषा. ग., 549 / 7. वि. गा, 2294-95 / .