________________ 32 / आर्हती-दृष्टि से नवनीत, ईख से रस, अरणी से आग निकालकर पृथक् रूप से दिखाई जा सकती हैं वैसे आत्मा को शरीर से अलग करके नहीं दिखाया जा सकता / जल के बिना जल के बुबुद् नहीं होते वैसे ही भूतों से व्यतिरिक्त कोई आत्मा नहीं है। जब कोई व्यक्ति अलात को घुमाता है तो दूसरों को लगता है चक्र घूम रहा है उसी प्रकार भूतों का समुदाय भी विशिष्ट क्रिया के द्वारा जीव की भ्रान्ति उत्पन्न करता है। अतएव यह सुनिश्चित है कि आत्मा और शरीर एक है। शरीर भिन्न आत्म तत्त्व का अस्तित्व नहीं भूतात्मवाद का निराकरण आत्मवादियों ने यह सिद्ध किया कि शरीर से भिन्न आत्मा का अस्तित्व है / यदि भूतों से ही. चैतन्य की उत्पत्ति होती तो सर्वदा और हर क्षण जीवों की उत्पत्ति होनी चाहिए। ऐसा प्रतीति का विषय नहीं बनता है तथा भूतों की शरीराकार परिणति ही यदि चैतन्य को उत्पन्न करती है तो मृत्यु कभी भी नहीं होनी चाहिए तथा चित्रलिखित चित्रों में भी चैतन्य होना चाहिए। भूत जड़ रूप है आत्मा चैतन्यरूप अतः जड़ से चैतन्य कैसे पैदा हो सकता है ? उपादान की मर्यादा को जाननेवाला जड़ लक्षणवाले भूतों से चैतन्य की उत्पत्ति को कैसे स्वीकार कर सकता है। यदि यह तर्क प्रस्तुत किया जाये कि अलग-अलग भूत चैतन्य पैदा नहीं कर सकते किन्तु वे मिलकर चैतन्य नामक तत्त्व को पैदा कर देते हैं यह भी तर्क सिद्ध नहीं है क्योंकि जब प्रत्येक भूत में चैतन्य अनुपलब्ध है तो उनके समुदित होने पर भी चैतन्य की उत्पत्ति असम्भव है / बालुकणों में प्रत्येक में तैल अनुपलब्ध है तो सैंकड़ों मन बालुकणों से भी तैल की प्राप्ति नहीं हो सकती। यदि यह कहा जाये कि प्रत्येक भूत में चैतन्य अव्यक्त रूप से है किन्तु उसकी अभिव्यक्ति उनके समुदित होने से होती है। यह तर्क तो भूतचैतन्यवाद का निराकरण करके आत्मवाद को ही स्थापित करता है क्योंकि स्वयं भूतवादियों ने भूतों में चैतन्य को स्वीकार किया है / अतएव स्पष्ट है कि चैतन्य भूतातिरिक्त पदार्थ है वह भूतों का न तो धर्म है न ही उनका फल है। अचेतनानि भूतानि न तद्धर्मो न तत्फलम्। चेतनाऽस्ति च यस्येयं स एतात्मेति चापरे / / भूत कठोर तथा जड़ स्वभाववाले हैं। चेतना में ये दोनों धर्म नहीं है फिर वह भूतों का फल कैसे है?