________________ आत्म मीमांसा / 31 है न पुरुष / आत्मा को उपमा से नहीं बताया जा सकता वह अरूपी सत्ता है। वह इन्द्रिय के द्वारा ग्राह्य नहीं है। आत्मा चैतन्य स्वरूपा है / उपनिषद् भी आत्मा को अवक्तव्य मानते हैं—'स एष नेति नेति, यतो वाचा निवर्तन्ते, नैव वाचा न मनसा प्राप्तुं शक्यः / ' उपनिषद् आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार तो करता है किन्तु उसका स्वरूप शब्दातीत है यह अभिप्राय उपर्युक्त मंत्रों से स्पष्ट होता है। __ आत्मा स्वानुभव का विषय है। अनुभव स्वसंवेद्य होता है। किन्तु परप्रत्यायन के लिए परोक्षज्ञान ही उपयोगी बनता है। इसलिए सूक्ष्म या स्थूल, अमूर्त या मूर्त किसी भी द्रव्य के अस्तित्व या नास्तित्व का समर्थन तर्क के द्वारा करने की परम्परा प्रचलित है। आत्मा के स्वसंवेद्य होने पर भी तर्क के आधार पर उसका अस्तित्व सिद्ध करने का प्रयास दार्शनिकों ने किया है। जब-जब अनात्मवादी दार्शनिकों ने आत्मा को नकारते हुए उसके नास्तिव सिद्धि के लिए हेतु प्रस्थापित किये तब प्रतिवाद स्वरूप आत्मवादियों ने भी हेतु रूपी हेति का अवलम्बन लिया। अनात्मवादियों के द्वारा आत्मा के नास्तित्व की प्रस्थापना भूतवादी दार्शनिकों ने भूतों से भिन्न आत्म तत्त्व को स्वीकार करने में असहमति . प्रकट की। उनका अभ्युपगम है कि भूतों से अतिरिक्त किसी अन्य स्वतंत्र आत्मतत्त्व का अस्तित्व नहीं है / अनुमान प्रमाण को प्रस्तुत करते हुए उन्होंने कहा.: 'इह कायाकारपरिणतानि चेतनाकारणभूतानि भूतान्येवोपलभ्यन्ते, न पुनस्तेभ्यो व्यतिरिक्तो भवान्तरयायी यथोक्तलक्षणः कश्चनाप्यात्मा, तत्सद्भावे प्रमाणाभावात्' अर्थात् शरीराकार में परिणत चेतना के कारणभूत भूत ही उपलब्ध हो रहे हैं उनसे अतिरिक्त भवान्तरगामी चैतन्यस्वरूप कोई आत्मा नहीं है। उसके सद्भाव को सिद्ध करनेवाले हेतुओं का अभाव है। शरीर ही आत्मा है / इसलिए ही हमें यह प्रत्यय होता है 'स्थूलोऽहं', 'कृशोऽहं' मैं स्थूल हूं, कृश हूं। अजितकेशकंबल के दार्शनिक विचारों का वर्णन सूत्रकृताङ्ग सूत्र के द्वितीय श्रुतस्कन्ध में है। पैर के तलवे से ऊपर सिर के केशाग्र के नीचे और तिरछे चमड़ी तक जीव है। शरीर ही आत्मा है। शरीर जीता है तब तक आत्मा जीता है / यह मर जाता है तब आत्मा भी मर जाता है। शरीरपर्यन्त ही जीवन होता है। अतएव आत्मा और शरीर एक है। जो शरीर और आत्मा को भिन्न मानते हैं उनका मत सम्यक नहीं है क्योंकि शरीर से भिन्न आत्मा दृष्टिगोचर ही नहीं होती। आत्मा को कोई भी शरीर से अतिरिक्त नहीं दिखा सकता जैसे कोई पुरुष म्यान से तलवार निकालकर दिखा सकता है यह म्यान है और यह तलवार है वैसे यह शरीर है और यह आत्मा है ऐसा कोई नहीं दिखा सकता / तिल से तैल, दही