________________ 326 / आर्हती-दृष्टि - उमास्वाति ने कहा—जहां श्रुतज्ञान है वहां मतिज्ञान नियमतः है, किन्तु जहां मति हो वहां श्रुत हो भी सकता है, नहीं भी हो सकता है, वहां वह वैकल्पिक है। परन्तु नन्दीकार के अनुसार जहां मतिज्ञान है वहां श्रुतज्ञान निश्चित है। मति, श्रुत का अविनाभाव सम्बन्ध है-ऐसा नन्दी सूत्रकार, पूज्यपाद देवनन्दी तथा अकलंक मानते प्रश्न यह है कि यह अविनाभाव मत्युपयोग एवं श्रुतोपयोग का है अथवा उनकी लब्धि का है। इस प्रश्न का समाधान स्पष्ट रूप से ऊपरी सन्दर्भो में उपलब्ध नहीं है परन्तु यह बहुत सम्भव है कि लब्धि का सहभाव है, उपयोग का नहीं है, क्योंकि जैन-चिन्तकों का मानना है कि दो उपयोग युगपत् नहीं हो सकते तथा उमास्वाति का यह कथन कि मतिश्रत निश्चित रूप से अनुगमन करे यह जरूरी नहीं है। यह वक्तव्य उपयोग के आधार पर हो सकता है। मत्युपयोग होने पर श्रुतोपयोग हो यह जरूरी नहीं है / अतः उमास्वाति का कथन उपयोग को लेकर है न कि लब्धि के आधार पर / अन्य आचार्यों का कथन लब्धि के आधार पर है, उपयोग के आधार पर नहीं है। मतिज्ञान एवं श्रुतज्ञान के स्वामी, काल, विषय समान हैं अतः उनमें परस्पर अभिन्नता है तथा अन्य दृष्टि से उनमें परस्पर भिन्नता भी है.। मति तथा श्रुत का लक्षण भिन्न है, अतः वे भिन्न हैं / श्रुतज्ञान मतिपूर्वक होता है जबकि मतिज्ञान श्रुतपूर्वक नहीं होता / आचार्य जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण ने मति और श्रुत की भिन्नता के कारणों का निरूपण करते हुए कहा लक्खणभेआ हेऊफलभावओ भेय इन्दिय विभागा। वाग-क्खर-मूए-यर आभेओ मइमुयाणं / ___ वि. गा. 97 उन्होंने मति और श्रुति के भेद इस प्रकार किये हैं। . 1. लक्षण कृत भेद, 2. मतिज्ञान कारण है, श्रुतज्ञान कार्य है। 3. मतिज्ञान के 28 भेद हैं, श्रुतज्ञान के 14 भेद हैं। 4. श्रुतज्ञान श्रोत्रेन्द्रियों का विषय है जबकि मति श्रोत के अतिरिक्त अन्य इन्द्रियों का भी विषय है। 5. मतिमूककल्पा है, श्रुत अमूककल्प है। 6. मतिज्ञान अनक्षर होता है, श्रुतज्ञान अक्षर होता है।