________________ मन : पर्यवज्ञान / 307 अन्य दर्शनों में अतीन्द्रिय ज्ञान ___ अवधि और मनःपर्यवदोनों अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष ज्ञान हैं / न्यायदर्शन, वैशेषिकदर्शन, योगदर्शन, बौद्धदर्शन और जैन में अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष का वर्णन मिलता है। किन्तु जैन आगमों में जितना विस्तार के साथ इन दोनों का निरूपण हुआ है, उतना अन्य किसी दर्शन में उपलब्ध नहीं है। प्राचीन न्याय-दर्शन में अतीन्द्रिय प्रत्यक्ष का उल्लेख नहीं है। नव्य-न्याय में गंगेश उपाध्याय ने योगज प्रत्यक्ष का उल्लेख किया है। वैशेषिक सूत्र के प्रशस्तपाद भाष्य में वियुक्त-योगी-प्रत्यक्ष का साधारण वर्णन मिलता है। इससे ज्ञात होता है कि अतीन्द्रिय-प्रत्यक्ष के विषय में श्रमण दर्शनों ने ही अधिक ध्यान दिया है। परचित्त ज्ञान का उल्लेख योगसूत्र व बौद्ध-दर्शन दोनों में मिलता है। बौद्ध दर्शन बौद्ध-दर्शन के अनुसार चैतोपरीय ज्ञान या परिचित्त बोध के द्वारा दूसरे व्यक्ति के विचारों को पढ़ा जा सकता है। मज्झिमनिकाय में कहा गया है कि चैतोपरीय ज्ञान के द्वारा व्यक्ति दूसरे के चित्त की विभिन्न दशाओं को स्पष्ट रूप से जान लेता है कि अमुक व्यक्ति का चित्त मनोवेगपूर्ण है या मनोवेगरहित, सराग है या वीतराग? इसी प्रकार चित्त की विभिन्न स्थितियों-उच्च, नीच, बद्ध, मुक्त आदि का साक्षात् ज्ञान ही चेतोपरीय ज्ञान है / विशुद्धिमग्ग के अनुसार इसके द्वारा स्वयं का बोध नहीं होता, शेष सब सत्त्वों को जाना जा सकता है। योग-दर्शन ___ योगसूत्र के अनुसार चित्तवृत्ति पर संयम करके योगी चित्त को जान सकता है। वह जिस प्रकार स्वचित्त-वृत्ति पर संयम करके स्वचित्त का बोध कर सकता है, उसी प्रकार दूसरे की चित्तवृत्ति पर संयम करके परचित का बोध भी कर सकता है। योग-दर्शन के अनुसार भी योगी को परचित्त का ही ज्ञान होता है, उसके आलम्बन का नहीं अर्थात् योगी यह तो जानता है कि अमुक व्यक्ति का चित्त रागयुक्त है अथवा क्रोधयुक्त पर वह यह नहीं जान पाता है कि किसके प्रति रागयुक्त या क्रोधयुक्त है। योग-दर्शन के अनुसार हृदय में संयम करने से भी परचित्त का साक्षात्कार हो सकता है। पुण्डरीकाकार गर्त रूप हृदय देश में संयम (धारणा, ध्यान, समाधि) करने से चित्त का साक्षात्कार सम्भव है / स्वहृदय में संयम से स्वचित्त और परहृदय में संयम से परचित्त का साक्षात्कार होता है / परचित्त ज्ञान की दृष्टि से जैनमान्य मनःपर्यवज्ञान