________________ मन : पर्यवज्ञान / 299 गया है / वीरसेन के अनुसार विपुलमति मनःपर्यवज्ञान अव्यक्त मन को भी जान लेता है। अव्यक्त मन का अभिप्राय है-चिन्तन में अर्धपरिणत, चिन्तित वस्तु के स्मरण से रहित और चिन्तन में अव्यापृत मन ।इस प्रकार विपुलमति मनः पर्यवज्ञान में क्षयोपशम इतना विशिष्ट होता है कि वह ऋजु और अऋजु रूप से चिन्तित, अचिन्तित या अर्धचिन्तित, वर्तमान में विचार किया जा रहा है, अतीत में विचार किया गया था अथवा भविष्य में चिन्तन किया जाएगा, उन सब अर्थों को जान लेता है। गोम्मटसार जीवकाण्ड के अनुसार विपुलमति मनःपर्यवज्ञानी भूत, भविष्यत् और वर्तमान जीव के द्वारा चिन्तन किए गए त्रिकालगत- रूपी पदार्थ को जानता है / जबकि ऋजुमति केवल वर्तमान में चिन्तन किए गए पदार्थ को ही जानता है। दिगम्बर साहित्य में विपुलमति मनःपर्यवज्ञान के छह भेद उपलब्ध होते हैं१. ऋजुमनोगत-यथार्थ अथवा स्फुट मन के द्वारा चिन्तन किए गए अर्थ को जानना ऋजुमनोगत विपुलमति है। 2. ऋजुवचनगत-यथार्थ वाणी के व्यापार के आधार पर किसी के विचार . को जानना ऋजुवचनगत है। . 3. ऋजुकायगत-यथार्थ कायिक चेष्टा से चिन्तित अर्थ को जानना ऋजुकायगत है। 4. वक्रमनोगत-संशय, विपर्यय और अनध्यवसाय मन वक्र मन है / तद्गत अर्थ को जानना वक्र मनोगत है। 5. वक्रवचनगत-संशय आदि से युक्त भाषा के आधार पर भी चिन्तित अर्थ को जान लेना वक्रमनोगत है। 6. वक्रकायगत-संशय आदि से युक्त काय-व्यापार के आधार पर मन का ज्ञान वक्रकायगत विपुलमति मनःपर्यवज्ञान है। वक्रता का दूसरा अर्थ व्यक्तता भी है / वर्तमान के चिन्तन को जानना सरल है पर भूत अथवा भविष्य के चिन्तन को यथार्थतः जानना दुष्कर है क्योंकि वह उतना व्यक्त नहीं होती है। मनःपर्यवज्ञानी भी ज्ञानचेतना जब बहुत अधिक पटु हो जाती है, तभी वह भूत और भविष्य में बननेवाले मनोद्रव्य के पर्यायों को यथावत् ग्रहण कर पाता है। ऋजुमति और विपुलमति मन:पर्यवज्ञान में अन्तर . आचार्य उमास्वाति ने ऋजुमति और विपुलमति का भेद बतलाने के लिए विशुद्धि और अप्रतिपात इन दो हेतुओं का निर्देश किया है।