________________ 286 / आईती-दृष्टि अवधिज्ञान की परिभाषा पारमार्थिक प्रत्यक्ष में अवधि का पहला स्थान है / जो द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा अवधि अर्थात् सीमा से युक्त अपने विषयभूत पदार्थ को जानता है, उसे अवधि कहा गया है। आगम में अवधि का नाम सीमा ज्ञान भी है। अधिक अधोगामी . विषय को जानने से अथवा परिमित विषयवाला होने से भी यह अवधि कहलाता है। विशेषावश्यकभाष्य में अवधि की विभिन्न प्रकार से व्युत्पत्ति उपलब्ध है। जिस ज्ञान के द्वारा अधोगामी रूपी वस्तुओं का विस्तार से ज्ञान होता है, वह अवधि है ।अवधि का एक अर्थ है-मर्यादा। जो मर्यादित द्रव्य, क्षेत्र, काल आदि में रूपी द्रव्यों को जानता है, वह अवधि है / अवधान को भी अवधि कहा गया है अर्थात् साक्षात् पदार्थ का परिच्छेद / जीव अवधिज्ञान से द्रव्य को साक्षात् जानता है / अवधि का विषय केवल रूपी पदार्थ है / अवधिज्ञान धर्म आदि छह द्रव्यों में केवल एक पुद्गल द्रव्य को ही जान सकता है। संक्षेप में अवधिज्ञान के विकास की अनेक कोटियां अथवा मर्यादाएं हैं / इसलिए इसकी संज्ञा अवधिज्ञान है / इसका सम्बन्ध अवधान अथवा प्रणिधान से है। इसलिए इसकी संज्ञा अन्वर्थक है। अवधिज्ञान का विषय अवधिज्ञान सावधिक ज्ञान है। केवलज्ञान के समान अनन्त, असीम नहीं है। आत्मा आकाश, काल आदि अमूर्त पदार्थ उसकी ज्ञेय सीमा से बाहर हैं / विशिष्ट अवधिज्ञान-सर्वाधिक समस्त पुद्गल द्रव्य को जानता है अर्थात् परमाणु मात्र को भी जानता है। अवधिज्ञान का विषय संक्षेप में द्रव्य, क्षेत्र, काल एवं भाव के आधार पर चार प्रकार से प्रतिपादित किया जाता है१. द्रव्य की अपेक्षा-जघन्य अनन्त रूपी द्रव्यों को जानता देखता है। उत्कृष्ट रूप से समस्त रूपी द्रव्यों को जानता देखता है। 2. क्षेत्र की अपेक्षा-जघन्य अंगुल का असंख्यातवां भाग / उत्कृष्ट असंख्य क्षेत्र तथा शक्ति की कल्पना करें तो लोकाकाश जैसे-असंख्य खण्ड इसके विषय बन सकते हैं। काल की अपेक्षा-जघन्य-आवलिका का असंख्यातवां भाग। उत्कृष्टअसंख्यकाल (असंख्य अवसर्पिणी, उत्सर्पिणी)