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________________ अवधिज्ञान जैन दर्शन के अनुसार आत्मा अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त आनन्द एवं अनन्त शक्ति-सम्पन्न है / प्रत्येक आत्मा में अनन्त चतुष्ट्य विद्यमान है / आत्मा अपनी अनन्त ज्ञान-शक्ति के द्वारा सार्वकालिक सम्पूर्ण ज्ञेय पदार्थ को सर्वांगीण रूप में जानने में समर्थ है / बन्धनावस्था में आत्मा का यह स्वरूप ज्ञान आवारक ज्ञानावरणीयकर्म से आवृत रहता है, अतः आत्मा का वह स्वरूप प्रकट नहीं हो पाता है ।आवृत दशा में आत्मा का जितना जितना आवरण दूर हटता है, उतना ही वह ज्ञेय जगत् को जान पाती है ।ज्ञान-शक्ति का उतना ही आविर्भाव होता है जितना आवारक कर्म अलग होता है। मति एवं श्रुत ज्ञान की अवस्था में आत्मा पदार्थ से सीधा साक्षात्कार नहीं कर सकती। पदार्थ ज्ञान में उसे आत्मा से भिन्न इन्द्रिय मन, आलोक आदि की अपेक्षा रहती है, अतः उन ज्ञानों को परोक्ष कहा गया है। किन्तु जब आवरण विरल अथवा सम्पूर्ण रूप से हट जाता है तब आत्मा को ज्ञेय साक्षात्कार में बाह्य साधनों की अपेक्षा नहीं रहती है, अतः उस ज्ञान को प्रत्यक्ष कहा जाता है ।प्रत्यक्ष ज्ञान के तीन भेद हैं 1. अवधि, 2. मनःपर्यव एवं 3. केवल। इन तीन को नोइन्द्रिय प्रत्यक्ष भी कहा गया है। प्रस्तुत प्रसंग में नो का अर्थ है इन्द्रिय का अभाव अर्थात् ये तीनों ज्ञान इन्द्रिय जन्य नहीं हैं। ये ज्ञान केवल आत्म सापेक्ष हैं। आत्मा एवं पदार्थ के मध्य किसी तीसरे माध्यम की आवश्यकता नहीं रहती / इन्द्रिय प्रत्यक्ष को जब संव्यवहार प्रत्यक्ष कहा जाने लगा तब नोइन्द्रिय को पारमार्थिक प्रत्यक्ष कहा जाने लगा। नोइन्द्रिय प्रत्यक्ष अतीन्द्रिय ज्ञान है / इस कोटि का ज्ञान इन्द्रियों की सहायता के बिना सूक्ष्म, व्यवहित और विप्रकृष्ट पदार्थों का साक्षात्कार कर सकता है। पदार्थ मूर्त और अमूर्त दो प्रकार के होते हैं। अवधि और मनःपर्यव ये ज्ञान केवल मूर्त पदार्थों का साक्षात्कार कर सकते हैं। केवल ज्ञान के मूर्त और अमूर्त दोनों प्रकार के विषय है। अवधिज्ञान और मनःपर्यवज्ञान क्षायोपशमिक होते हैं इसलिए ये अपूर्ण अतीन्द्रिय ज्ञान की कोटि के हैं। केवलज्ञान क्षायिक है, ज्ञानावरण के सर्वथा क्षीण होने से उत्पन्न होता है इसलिए व परिपूर्ण अतीन्द्रिय ज्ञान है /
SR No.004411
Book TitleAarhati Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year1998
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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