________________ 282 / आर्हती-दृष्टि 67. दर्शन और चिन्तन, पृ. ४२२/ज्ञानबिन्दु. पृ. 41,60, 62. 68. पुव्वं सुयपरिकम्मियमइस्स जं संपयं सुयाईयं / तं निस्सियमियरं पुण अणिस्सियं मइचउक्कं तं // वि. भा. गा-१६९ 69. नंदी सू. 38 70. वि. भा. गा.३०३-४ 71. किह पडिकुक्कुडहीणो जुझे बिंबेण वग्गहो, ईहा। ... किं सुसिलिट्ठमवाओ दप्पणसंकंतबिम्ब ति // . वि. भा. गा. 304 72. पुवदिट्ठ-मस्सुय भवइ य, तक्खणविसुद्धगहियत्था। अव्वाहय-फलजोगा, बुद्धि उप्पत्तिया नाम // आ. नि. गा.९३३ 73. अदृष्टाश्रुतार्थग्राहिणी औत्पत्तिकी। जै. सि. दी. 2/17 74. विनयसमुत्था वैनयिकी। जै. सि. दी. 2 /18 75. भर नित्थरण-समत्था तिवग्ग-सुत्तत्थ-गहिय पेयाला। उभओ लोग फलवाई विणयसमुत्था हवई बुद्धि / / आ. नि. गा. - 937 76. जै. सि. दी. 2/19 77. उवओगदिट्ठसारा कम्मपसंगपरिघोलणविसाला। . साहुकार फलवई कम्मसमुत्था हवइ बुद्धि // आव. नि. गा. -940 78. जै. सि. दी. 2/20 79. अणुमान-हेउ-दिट्ठतसाहिआ, वय-विवाग-परिणामा। . हिय-निस्सेयस फलवई बुद्धि परिणामिया नाम / आ. नि. गा. 942 80. जैन दर्शन मनन और मीमांसा, पृ. 587 81. वासनोबोधहेतुका तदित्याकार स्मृतिः। प्रमाण. मी. 1/2/3 82. भिक्षु न्याय कर्णिका 3/5 83. अनुभवस्मृतिसंभवं तदेवेदं तत्सदृशं तद्विलक्षणं तत्प्रतियोगीत्यादि संकलनं प्रत्यभिज्ञा। भिक्षुन्यायकर्णिका 3/6 84. उपलम्भानुलम्भनिमित्तं व्याप्तिज्ञानमूहः। प्रमाण मीमांसा 1/2/5 85. साधनात्साध्यज्ञानमनुमानम्। भि. न्याय क 3/8 86. स्थानांग सू. 2/104 87. तत्वार्थ भा. 1/20 88. श्रुतं मतिपूर्वद्वयनेकद्वादशभेदम् / तत्वार्थ सू. 1/20