________________ मतिज्ञान एवं श्रुतज्ञान / 281 42. नंदी सू. 53-54 43. उग्गह इक्कं समयं / नंदी सू. 34/3 44. असंखेज्जसमयपविट्ठा पुग्गला गहणमागच्छंति। नंदी सू. 52, 45. व्यंजनावग्रहकालेपिऽज्ञानमस्त्येव, सूक्ष्माव्यक्तत्वात् तु नोपलभ्यते सुप्ताव्यक्तविज्ञानवत्। स्थानांग वृ. पत्र. 47 46. वि. भा. गा. 282-83 47. अवगृहीतार्थविशेषकाक्षणमीहा प्रमाणनयतत्वालोक. 28 48. (क) अमुकेन भाव्यमिति प्रत्यय ईहा। जै. सि. दी. व. 2/13 (ख) तह वियालणं ईहं। _ वि. भा. गा. 179 (ग) इय सामण्णग्गहणाणतरभीहा सदंत्थवीमंसा। वि. भा. गा. 289 49. नंदी सू. 45 50. 'ईहा ऊहा तर्क: परीक्षा विचारणा जिज्ञासेत्यनर्थान्तरम्' तत्वा. भा. 1/15 51. नंदी सू. 50 52. ईहितविशेषनिर्णयोऽवाय:। प्रमाण मी. 1/1/28 53. महराइगुणत्तणओ संखस्सेव त्ति जं न संगस्स। विण्णाणं सोऽवाओ अणुगम-वइरेगभावाओ // वि. भा. गा. 290 54. नंदी सू. 47 55. तत्वा. भा. 1/15 56. नंदी सू. 50 57. स्मृतिहेतुर्धारणा। प्रमाण मी. 1/1/29 58. तयणंतरं तयत्थाविच्चवणं जो य वासणाजोगो। कालंतरे य जं पुणरणुसरणं धारणा सा उ॥ वि. भा गा. 291 59. नंदी सू. 49 60. तत्वार्थ भा. 1/15 61. नंदी सू. 50 62. वि. भा. गा. 295-96 63. भिक्षु न्याय कर्णिका 2/14 64. वही, 2/15 65. वही, 6/16 66. जैन दर्शन-मनन-मीमांसा, पृ. 518