________________ मतिज्ञान एवं श्रुतज्ञान / 269 है / अवाय का कालमान भी अन्तर्मुहूर्त है / एक वस्तु के ज्ञान में अविशेषित सामान्य का ज्ञान करानेवाला नैश्चयिक अवग्रह है तथा अवाय के द्वारा एक तथ्य का निश्चय होने के पश्चात् फिर तत्सम्बन्धी दूसरे तथ्य की जिज्ञासा होती है, तब पहले का अवाय व्यावहारिक अर्थावग्रह बन जाता है। यह क्रम जब तक जिज्ञासाएं शान्त नहीं होती तब तक चलता रहता है। धारणा अवाय में जो निश्चित ज्ञान होता है, उसकी अवस्थिति धारणा है। धारणा को स्मृति का हेतु कहा गया है। विशेषावश्यक भाष्य में धारणा को त्रिभेदात्मक कहा है। धारणाकाल में जो सतत उपयोग चलता है, उसे अविच्युति कहा जाता है। उपयोगान्तर होने पर धारणा वासना के रूप में परिवर्तित हो जाती है। यही वासना कारण विशेष से उबुद्ध होकर स्मृति बन जाती है।" नन्दी सूत्र में धारणा के लिए धरणा, धारणा, स्थापना, प्रतिष्ठा, कोष्ठा इन शब्दों का प्रयोग हुआ है।" उमास्वाति ने प्रतिपत्ति, अवधारणा, अवस्थान, निश्चय, अवगम एवं अवबोध शब्द को धारणा का पर्यायवाची माना है। धारणा संख्येय एवं असंख्येय काल तक रह सकती है। अवग्रह आदि का क्रम विभाग ___ अवग्रह, ईहा, अवाय और धारणा का न उत्क्रम होता है और न व्यतिक्रम। अर्थग्रहण के बाद ही विचार हो सकता है, विचार के बाद ही निश्चय और निश्चय के बाद ही धारणा होती है। इसलिए ईहा अवग्रहपूर्वक, अवाय ईहापूर्वक और धारणा अवायपूर्वक होती है / अवग्रह आदि परस्पर भिन्न भी है और अभिन्न भी है। ये एक वस्तु विषयक ज्ञान की धारा के अविरल रूप हैं, फिर भी उनकी अपनी विशेष स्थितियां हैं जो उन्हें एक-दूसरे से पृथक् करती हैं।" (1) असामस्त्येन उत्पत्ति-एक के उत्पन्न होने पर दूसरा उत्पन्न हो ही यह आवश्यक नहीं है। ज्ञान का क्रम, अवग्रह, ईहा कहीं पर भी रुक सकता (2) अपूर्वापूर्व प्रकाश-ये एक ही वस्तु के नये-नये पहलुओं पर प्रकाश डालते हैं। इससे एक बात और भी स्पष्ट होती है कि अपने-अपने विषय में इन सबकी निर्णायकता है, इसलिए ये सब प्रमाण हैं। .. (3) क्रमभावित्व-इनकी धारा अन्त तक चले, यह कोई नियम नहीं है। किन्तु जब तक चलती है तब क्रम का उल्लंघन नहीं होता है, ईहा हुई है तो