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________________ - जीव और शरीर के सम्बन्ध सेतु / 25 किया। जड़ तत्त्व का मुख्य लक्षण विस्तार तथा चेतन द्रव्य का लक्षण विचार है। देकार्त के शब्दों में-The mind or soul of a man is entirely different from body. जब दो तत्त्वों की निरपेक्ष सत्ता स्वीकृत हुई तो उनका आपस में क्या सम्बन्ध है यह समस्या महत्त्वपूर्ण हो गई। जब दोनों सर्वथा भिन्न हैं तो इनमें परस्पर अन्तर्किया कैसे होती है ? मन का शरीर पर और शरीर का मन पर प्रभाव कैसे पड़ता है? देकार्त ने इसका समाधान शरीरशास्त्रीय दृष्टिकोण से दिया। उसने बतलाया कि शरीर का मन और मन का शरीर पर वास्तविक रूप से कोई प्रभाव नहीं पड़ता। उसने शरीर और आत्मा (मनस) का सम्बन्ध-सेतु मस्तिष्क के अग्रभाग में स्थित पीनियल ग्रन्थि को माना। इसी ग्रन्थि के कारण मन और शरीर में परस्पर सहयोग दिखलाई पड़ता है / देकार्त के इस अभ्युपगम पर कई आपत्तियां भी उपस्थित की गयीं, जैसे(१) निराकार आत्मा साकार पीनियल में कैसे रहती है ? (2) दो भिन्न तत्त्वों में परस्पर अन्तक्रिया कैसे हो सकती है? (3) देकार्त का यह सिद्धान्त शक्ति संरक्षण के विरुद्ध है। यह नहीं कहा जा सकता कि शारीरिक घटनाओं से मानसिक घटनाएं और मानसिक से शारीरिक घटनाएं होती हैं / देकार्ते के सिद्धान्त में उपर्युक्त कठिनाइयां होते हुए भी आधुनिक वैज्ञानिक शरीर और मन में अन्तक्रिया मानते हैं / इस समस्या को सुलझाने के लिए चिन्तकों का ध्यान केन्द्रित हुआ है तथा इसको सुलझाने के लिए प्रयल भी किए हैं। जैन दर्शन की मान्यता ___जैन दर्शन द्वैतवाद का पक्षधर है। इसके अनुसार जड़ और चेतन ये दो तत्त्व विश्व-व्यवस्था के नियामक हैं / दोनों का स्वभाव एवं अस्तित्व स्वतन्त्र है / चेतन और अचेतन का परस्पर अत्यन्ताभाव है फिर भी उनका परस्पर सम्बन्ध है। सिद्धसेन दिवाकर ने कहा—संसारी आत्मा कर्म के साथ क्षीर-नीर की तरह मिली हुई है, अतः अभिन्न है तथा उनका तात्त्विक अस्तित्व स्वतन्त्र है, अतः वे परस्पर भिन्न भी हैं। संसारावस्था में जड़, चेतन में परस्पर क्षीर-नीर की तरह एकीभाव सम्बन्ध है। जो अनुसंचरण करनेवाला जीव है वह पुद्गल के साथ घुला-मिला है इसलिए चेतन और अचेतन सर्वथा स्वतन्त्र नहीं है / भगवती सूत्र में जीव और पुद्गल के सम्बन्ध सेतुओं का निरूपण करते हुए कहा गया है___. 'अत्थि णं जीवा य पोग्गला या अण्णमण्णबद्धा, अण्णमण्णपुट्ठा, अण्णमण्णमोगाढा, अण्णमण्णसिणेहपडिबद्धा, अण्णमण्णघडताए चिट्ठइ। जीव और पुद्गल परस्पर बद्ध हैं, स्पष्ट हैं, अवगाहित हैं, स्नेह से प्रतिबद्ध हैं।
SR No.004411
Book TitleAarhati Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year1998
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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