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________________ 24 / आर्हती-दृष्टि एवं मोक्ष पुरुष के नहीं होते हैं / उनके अनुसार प्रकृति ही बंधती है और वही मुक्त होती है। 'प्रकृतिरेव नानापुरुषाश्रया सती बध्यते संसरति मुच्यते च न पुरुष इति / उसने विसदृश पदार्थों का सम्बन्ध करवाये बिना ही संसार की व्याख्या की। विकास का पूरा भार प्रकृति पर ही डाल दिया। जो कार्य चेतन द्रव्य को करना था वह कार्य बुद्धि से करवाया। पुरुष को सर्वथा अमूर्त मान लेने के कारण ही बुद्धि को उभय मुखाकार दर्पण की उपमा से उपमित किया गया। विज्ञानवादी बौद्ध ने इस प्रश्न को ही टाल दिया। उसने कहा—विज्ञान ही सत् है / बाह्य पदार्थ का अस्तित्व ही नहीं है / अतः उनकी सम्बन्ध की चर्चा ही अनावश्यक है। भगवान् बुद्ध से भी प्रश्न पूछा गया-आत्मा और शरीर में भेद है या अभेद? उन्होंने आत्मा और शरीर में सर्वथा न भेद को स्वीकार किया न ही अभेद को। उन्होंने कहा-शरीर और आत्मा में सर्वथा भेद या अभेद मानने से ब्रह्मचर्यवास सम्भव नहीं है / अतः मैं मध्यम मार्ग का उपदेश देता हूं। नैयायिक एवं वैशेषिक भी द्वैतवादी दार्शनिक हैं। उनके यहां भी परमाणु तथा चेतन—ये दोनों भिन्न तत्त्व हैं / जगत् के उपादान कारण ये ही हैं। इनका सम्बन्ध ईश्वरीय शक्ति के द्वारा होता है / इनको इन दोनों में सम्बन्ध करवाने के लिए निमित्त कारण के रूप में ईश्वर को स्वीकार करना पड़ा। . पाश्चात्य मत भारतीय दार्शनिकों के समक्ष ही यह समस्या नहीं थी, पाश्चात्य दार्शनिक भी आत्मा और शरीर में क्या सम्बन्ध है इस पर निरन्तर चिन्तन कर रहे थे। किसी ने अद्वैतवाद का समर्थन करके समस्या से मुक्ति पाने का प्रयत्न किया तो किसी ने द्वैतवाद को स्वीकृति देकर चेतन और जड़ में सम्बन्ध खोजने का प्रयल किया। बेनेडिक्ट स्पिनोजा अद्वैतवाद के समर्थक थे। उन्होंने मनस् और शरीर को एक ही तत्त्व के दो पहल के रूप में स्वीकार किया, अतः उन दो तत्त्वों में परस्पर सम्बन्ध की समस्या ही नहीं थी। लाइबनित्स ने मन और शरीर में कार्य-कारणभाव स्वीकार करके समस्या को समाहित करने का प्रयत्न किया। उनके अनुसार मन का शरीर पर और शरीर का मन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। रेने देकार्त ने Mind and body, मनस् (आत्मा) और शरीर की निरपेक्ष सत्ता स्वीकार की। उन दोनों की क्रिया, स्वभाव, स्वरूप में भी भिन्नता का स्पष्ट प्रतिपादन
SR No.004411
Book TitleAarhati Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year1998
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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