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________________ जीव और शरीर के सम्बन्ध सेतु विश्व-प्रहेलिका को सुलझाने का प्रयत्न सभी दार्शनिकों ने किया है। जगत् की व्याख्या सभी ने अपनी दृष्टि से भिन्न-भिन्न प्रकार से की है। सभी के सामने यह प्रमुख समस्या थी कि इस जगत् का नियामक तत्त्व क्या है ? जगत् का सम्पूर्ण प्रपंच एक तत्त्व का विस्तार है अथवा अनेक तत्त्वों की समन्विति है। द्वैतवादी और अद्वैतवादी विचारधारा ___ विश्व-व्याख्या के संदर्भ में दो प्रकार की विचारधाराओं का प्रस्फुटन हुआद्वैतवादी और अद्वैतवादी ।अद्वैतवादियों ने एक तत्त्व के आधार पर विश्व-व्याख्या प्रस्तुत की। द्वैतवाद ने दो तत्त्वों को विश्व व्याख्या में आधारभूत बनाया। अद्वैतवाद में भूताद्वैत तथा चैतन्याद्वैत प्रसिद्ध है / भूताद्वैतवादियों के अनुसार यह जगत् जड़ द्रव्य से पैदा हुआ है। जड़ से भिन्न किसी चेतन नामक द्रव्य का स्वतन्त्र अस्तित्व नहीं है। चेतन की उत्पत्ति जड़ से ही हुई है / चेतनाद्वैतवाद में कहा है-सम्पूर्ण जगत् चेतनामय है। चेतन भिन्न जड़ का कोई अस्तित्व नहीं है / चेतनाद्वैत (ब्रह्माद्वैत) में वेदान्त तथा भूताद्वैत (जड़ाद्वैत) में चार्वाक का शीर्षस्थ स्थान है। द्वैतवाद की जगत् व्याख्या दो तत्त्वों की फलश्रुति है / उनके अनुसार यह दृश्यमान चराचर जगत न केवल जड़ से पैदा हआ है और न ही चेतन से / चेतन तथा जड़ की समन्विति से ही यह जगत है। चेतन जड़ को पैदा नहीं कर सकता। अचेतन चेतन का उत्पत्तिकारक नहीं है / दोनों का स्वतः स्वतन्त्र अस्तित्व है। इन दोनों के योग से सृष्टि का जन्म होता है / यह द्वैतवाद की अवधारणा है। विजातीय तत्त्वों के सम्बन्ध की समस्या - अद्वैतवाद के सामने सम्बन्ध की समस्या नहीं थी यद्यपि ब्रह्म (चेतन) से जड़ अथवा जड़ से चेतन की उत्पत्ति कैसे हुई यह समस्या उनके सामने थी परन्तु दो विसदृश तत्त्वों का योग कैसे हुआ यह कठिनाई उनके समक्ष नहीं थी / द्वैतवादी दर्शनों को इस समस्या से जूझना पड़ा। दो विसदृश पदार्थों का परस्पर सम्बन्ध कैसे हो सकता है, इसका समाधान देना उनके लिए आवश्यक हो गया था ।सांख्य प्रकृति एवं / पुरुष ये दो तत्त्व मानता है। पुरुष अमूर्त, अकर्ता है। सांख्य दर्शन के अनुसार बंध
SR No.004411
Book TitleAarhati Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year1998
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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