________________ 252 / आर्हती-दृष्टि . 74. कर्मविशुद्धमार्गणापेक्षाणि चतुर्दश जीवस्थानानि / जैन सि. दीपिका, 7 / 1 75. इन्द्रियवादी री चौपई, 7-9 76. भाजन लारे जाण रे ज्ञान अज्ञान कही जिए। समदृष्टि रै ज्ञान रे, अज्ञान अज्ञानी तणो / भगवती जोड़, 8 / 2 / 55 77. भ्रष्टेनापि च चारित्राद दर्शनमिह दृढ़तरं ग्रहीतव्यम्। सिध्यन्ति चरणरहिता, दर्शनरहिता न सिध्यन्ति // त. भाष्यानु. टी. पृ. 12