________________ 246 / आर्हती-दृष्टि विचारधारा का अवलम्बी है क्योंकि वह एक ही आत्मतत्त्व में कारणरूप से चेतना और कार्य रूप से ज्ञान को स्वीकार करता है। उपाध्याय यशोविजयजी ने उसी भाव-ज्ञान को आत्मा का गुण कहकर प्रकट किया है। तत्त्वार्थ सूत्र में मोक्ष मार्ग की विवेचना करते हुए आचार्य उमास्वाति सम्यक् दर्शन, सम्यक ज्ञान एवं सम्यक चारित्र को मोक्ष मार्ग कहते हैं। स्वामी के भेद से ज्ञान भी सम्यक् एवं मिथ्या इन दो भेद दों में विभक्त हो जाता है। मोक्ष मार्ग का हेतु सम्यक् ज्ञान बनता है। मिथ्याज्ञान संसार परिभ्रमण का हेतु बनता है। सम्यक् रूप से जिसके द्वारा वस्तु का ग्रहण होता है, वही ज्ञान है।" सम्यक् दृष्टि के जो . ज्ञान कहलाता है वही मिथ्या दृष्टि से अज्ञान कहलाता है। मति, श्रुत एवं अवधि-ये ज्ञान सम्यक् एवं मिथ्या दोनों ही प्रकार से हो सकते हैं। सामान्यतः मति के दो भेद होते हैं-मति-ज्ञान और मति-अज्ञान / उसको विश्लेषित करने से ज्ञात होता है कि वह सम्यक् दृष्टि के मतिज्ञान है एवं मिथ्यादृष्टि के मति अज्ञान है।" मति अज्ञान भी ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम रूप है किन्तु उस ज्ञान के धारक व्यक्ति को दृष्टि मिथ्या है अतः दर्शन मोहकर्म के उदय के कारण क्षायोपशमिक ज्ञान भी अज्ञान . कहलाता है। यह अज्ञान संसार वृद्धि एवं परिभ्रमण का हेतु बनता है। ज्ञानावरण के उदय से औदयिक भावरूप जो अज्ञान है उसकी वक्तव्यता प्रस्तुत प्रकरण में नहीं है। औदयिक अज्ञान ज्ञान का अभाव है। जबकि मिथ्याज्ञान कुत्सित ज्ञान है। इस प्रकार अज्ञान में आगत नञ् का एक स्थान पर अभाव एवं एक स्थान पर कुत्सित अर्थ होगा। जीव की क्रमिक आत्म-विशुद्धि के आधार पर जैन-परम्परा में गुणस्थान को अवधारणा है / कर्म-विशुद्धि की अपेक्षा से चौदह गुणस्थान माने गए हैं। मिथ्याज्ञान प्रथम एवं तृतीय, इन दो गुणस्थानों में ही होता है। क्योंकि इन दो गुणस्थानों में ही मिथ्यात्वी जीव स्थित है। प्रथम गुणस्थान मिथ्यादृष्टि एव तृतीय मिश्र गुणस्थान है। ज्ञान का अभाव रूप अज्ञान तो प्रथम गुणस्थान से लेकर बारहवें गुणस्थान तक रहता है। केवलज्ञान प्राप्त होने पर ही उदयभाव रूप अज्ञान नष्ट होता है। उदयभाव रूप अज्ञान सम्यक्त्वी एवं मिथ्यादृष्टि दोनों के होता है। प्रथम एवं तृतीय गुणस्थान को छोड़कर अवशिष्ट सभी गुणस्थानों में सम्यक् ज्ञान माना गया है / यद्यपि सम्यक् दृष्टि को भी पदार्थों का विपरीत ज्ञान हो सकता है। रज्जू में सर्प का भ्रम हो सकता है पर वह कुत्सित ज्ञान नहीं कहलाता है।