________________ ज्ञानस्वरूप विमर्श / 243 आवश्यकता नहीं है / ज्ञान के लिए ज्ञानान्तर की कल्पना से अनवस्था दोष आता है। ज्ञान स्व-प्रकाशक तो है किन्तु नित्य नहीं / ज्ञान आत्मा का आगन्तुक गुण है। विषय सम्पर्क से आत्मा में ज्ञान उत्पन्न होता है। प्रत्येक ज्ञान में ज्ञेय, ज्ञान और ज्ञाता की त्रिपुटी का प्रत्यक्ष होता है। इसलिए यह त्रिपुटी प्रत्यक्षवाद है। ... बौद्ध दर्शन में साकार चित्त को ज्ञान कहा जाता हैं। बौद्ध दर्शन के भिन्न-भिन्न प्रस्थान हैं। अतः उनकी ज्ञान-मीमांसा में भी वैविध्य है। योगाचार अर्थात् विज्ञानाद्वैतवादी बौद्ध ज्ञान को ही मात्र परमार्थ सत् मानता है। उसके अनुसार बाह्य पदार्थ का कोई अस्तित्व ही नहीं है। वैभाषिक बौद्ध ज्ञान-मीमांसा के क्षेत्र में तदुत्पत्ति एवं तदाकारता के स्वीकार करते हैं उसके अभाव में प्रतिनियत कर्म-व्यवस्था नहीं हो सकती।" ज्ञान पदार्थ से उत्पन्न होता है तथा पदार्थाकार को ग्रहण करता है / घट से उत्पत्र ज्ञान घटाकार में परिणत होकर ही घटज्ञान करता है / बौद्ध दर्शन में अपूर्व अर्थ के ज्ञापक सम्यक ज्ञान को ही प्रमाण कहा गया है। जो ज्ञान अविसंवादी है वही सम्यग्ज्ञान कहलाता है।" अर्थ क्रिया की व्यवस्था से ही ज्ञान के अविसंवादित्व आदि का बोध होता है। सम्यग्ज्ञान प्रत्यक्ष एवं अनुमान भेद से दो प्रकार का है। कल्पना रहित ज्ञान अर्थात् निर्विकल्प ज्ञान एवं अभ्रांत ज्ञान प्रत्यक्ष प्रमाण है। व्याप्ति ज्ञान से सम्बन्धित किसी धर्म के ज्ञान से धर्मी के विषय में जो परोक्ष ज्ञान होता है वह अनुमान है। बौद्ध दर्शन में वही ज्ञान प्रमाण है और वही ज्ञान प्रमाण फल भी है। प्रत्येक ज्ञान अर्थ से उत्पन्न होता है तथा अर्थाकार होता है / यथा जो ज्ञान पुस्तक से उत्पन्न हुआ है वह पुस्तकाकार है तथा पुस्तक का बोधरूप है। अतः ज्ञान में जो पुस्तकाकारता है वह प्रमाण है और जो पुस्तक का बोध है, वह प्रमाणफल है। इस प्रकार एक ही ज्ञान में प्रमाण और फल की व्यवस्था की जाती है। बौद्ध दर्शन क्षणिकवादी है वहां आत्मा जैसे किसी नित्य द्रव्य की स्वीकृति नहीं है / ज्ञान चैतसिक है। चित्त परम्परा चलती रहती है। प्रवृत्ति विज्ञान एवं आलय विज्ञान की अवधारणा बौद्ध दर्शन में है। ___ चारू (रुचिकर) वक्तव्य के आधार पर इस दर्शन को चार्वाक दर्शन के रूप में जाना जाता है। इसको नास्तिक दर्शन भी कहा गया है। चार्वाक दर्शन में प्रत्यक्ष ही एकमात्र प्रमाण है। इन्द्रिय और अर्थ के सन्निकर्म से उत्पन्न ज्ञान प्रत्यक्ष है। इस पञ्चविध इन्द्रिय प्रत्यक्ष के द्वारा अनुभूत वस्तु प्रमाणसिद्ध; एवं अन्य सब वस्तुएं कल्पना प्रसूत हैं / प्रत्यक्ष के अतिरिक्त अन्य किसी अनुमान आदि को यह स्वीकार नहीं करता