________________ ज्ञानस्वरूप विमर्श / 241 व्यक्ति भी अविद्यावान् ही है। यदि वह ब्रह्म ज्ञाता नहीं है / उपनिषद् कहती है जो लोग अविद्या में पड़े रहकर अपने आपको बहुत बड़ा पंडित और ज्ञानी मानते हैं, वे वास्तव में मूढ हैं और उन अन्धे मनुष्यों के समान है जिनको अन्धे मनुष्य ही ले जा रहे हैं और जो गिरते-पड़ते भटकते रहते हैं। नचिकेता-यम, मैत्रेयी-याज्ञवल्क्य, नारद-सनतकुमार आदि के औपनिषदिक आख्यानों से उपनिषद् ज्ञान-मीमांसा का स्वरूप स्पष्ट हो जाता है / उपनिषद् की ज्ञान-मीमांसा का प्रमुख लक्ष्य है-ब्रह्मज्ञान / ब्रह्म की प्राप्ति अथवा ब्रह्ममय बन जाने के साथ ही ज्ञान-मीमांसा कृतकृत्य हो जाती है। उपनिषद् ‘सा विद्या या विमुक्तये के माध्यम से मोक्षदायिनी विद्या (ज्ञान) को सर्वश्रेष्ठ स्वीकार करती है। ____ सांख्य दर्शन प्रकृति और पुरुष इन दो तत्त्वों को स्वीकार करता है। पुरुष निर्गुण है एवं प्रकृति त्रिगुणात्मिका / पुरुष चेतन है किन्तु वह ज्ञान शून्य है। सांख्य के अनुसार बुद्धि या ज्ञान जड़ है। ज्ञान पुरुष का धर्म नहीं किन्तु प्रकृति का धर्म है। अतः अनुभव की उपलब्धि न तो पुरुष में होती है और न ही बुद्धि में होती है। जब ज्ञानेन्द्रिय बाह्य जगत् के पदार्थों को बुद्धि के सामने उपस्थित करती है तब बुद्धि उपस्थित पदार्थ का आकार धारण कर लेती है। बुद्धि के पदार्थाकार होने के पश्चात् चैतन्यात्मक पुरुष का प्रतिबिम्ब पड़ता है / बुद्धि में प्रतिबिम्बित पुरुष का पदार्थों से सम्पर्क होना ही ज्ञान है।" बुद्धि में प्रतिबिम्बित होने पर ही पुरुष को ज्ञाता कहा जाता है। प्रत्यक्ष अनुमान एवं आगम के भेद से सांख्य तीन प्रमाण स्वीकार करता है ।विवेक ज्ञान को ही पूर्ण ज्ञान मानता है। विपर्यय ज्ञान को इस दर्शन में सदसत्ख्याति कहते हैं.। सांख्य दर्शन ज्ञान की प्रमाणता एवं अप्रमाणता को स्वतः स्वीकार करता है। जैन दर्शन ज्ञान गुण के सन्दर्भ में सांख्यों की तरह जड़वादी नहीं है। वह ज्ञान को प्रकृति का गुण-धर्म नहीं मानता। जैन मत के अनुसार ज्ञान आत्मा का स्वभाव है। वह आत्मा का गुण है। आत्मा स्वरूपतः ज्ञान गुण सम्पन्न है। जैन चैतन्य और ज्ञान को सांख्यों की तरह भिन्न-भिन्न नहीं मानते। ये दोनों अभिन्न है। जैसे अग्नि स्वभावतः ही उष्णगुण युक्त होती है वैसे ही आत्मा भी स्वभावतः ज्ञानगुण युक्त. ही होती है। ___न्याय तथा वैशेषिक दर्शन, परस्पर सम्बद्ध हैं / वैशेषिक में तत्त्व-मीमांसा प्रधान है तथा न्यायदर्शन में तर्कशास्त्र और ज्ञान-मीमांसा का प्राधान्य है। न्यायदर्शन. वस्तुवादी है। वह ज्ञान को ज्ञाता और ज्ञेय का सम्बन्ध मानता है / ज्ञाता और ज्ञेय