________________ विशेषावश्यकभाष्य : एक परिचय | 225. वृत्ति (कोट्याचार्य) वृत्ति (हेमचन्द्र) आदि विपुल मात्रा में व्याख्या साहित्य आवश्यक सूत्र का उपलब्ध आगम-व्याख्या साहित्य आगम सूत्रात्मक शैली में गुम्फित है। सूत्र का गूढार्थ सहजता से उपलब्ध होना दुरुह है / व्याख्या साहित्य के द्वारा सूत्र की दुरूहता अल्प हो जाती है / मूल ग्रन्थ के रहस्य का उद्घाटन करने के लिए उस पर व्याख्यात्मक साहित्य का निर्माण करना भारतीय ग्रन्थकारों की बहुत प्राचीन परम्परा रही है। जैन विद्वानों ने भी आगम का व्याख्यात्मक साहित्य प्रचुर मात्रा में लिखा है / प्राचीनतम जैन आगमिक व्याख्यात्मक साहित्य को पांच भागों में विभक्त किया जा सकता है- (1) नियुक्ति, (2) भाष्य, (3) चूर्णिं (4) संस्कृत टीका, (5) लोक भाषा में रचित व्याख्या (टब्बा)। नियुक्तियों और भाष्य जैन आगमों की पद्यबद्ध व्याख्याएं हैं। ये दोनों प्राकृत भाषा में लिखित हैं / नियुक्तियां सांकेतिक भाषा में निबद्ध हैं। पारिभाषिक शब्दों की व्याख्या करना इनका मुख्य प्रयोजन है / सूत्र में नियुक्त अर्थ की सुव्यवस्थित व्याख्या करनेवाला ग्रन्थं नियुक्ति कहलाता है। नियुक्ति के प्रयोजन को स्पष्ट करते हुए कहा कि सब व्यक्ति सूत्र में नियुक्त अर्थ को व्याख्या के बिना समझ नहीं सकते, अतः सूत्रों पर नियुक्ति रूप व्याख्या आवश्यक है। आगम के व्याख्या ग्रन्थों में नियुक्ति के बाद भाष्य का क्रम आता है। नियुक्ति की अपेक्षा भाष्य अर्थ को अधिक स्पष्टता से प्रस्तुत करते हैं। नियुक्ति के पारिभाषिक शब्दों में गुम्फित अर्थबाहुल्य के प्रकाशनार्थ भाष्यों की रचना हुई / नियुक्तियों की व्याख्यान शैली निक्षेप पद्धति के रूप में प्रसिद्ध है। इस पद्धति में किसी पद के सम्भावित अनेक अर्थ करने के बाद उनमें से अप्रस्तुत अर्थ का निषेध करके प्रस्तुत अर्थ का ग्रहण किया जाता है। जैनन्याय-शास्त्र में इस पद्धति का बहुत महत्त्व है / आवश्यक, दशवैकालिक, उत्तराध्ययन आदि 10 आगमों पर नियुक्तियाँ लिखी गयी है / उपलब्ध नियुक्तियों के कर्ता आचार्य भद्रबाहु (द्वितीय) माने जाते हैं जो छेदसूत्रकार भद्रबाहु से भिन्न हैं / नियुक्ति के पश्चात् भाष्य साहित्य का क्रम आता है। भाष्य आगम व्याख्या साहित्य में भाष्य का महत्त्वपूर्ण स्थान है / प्राकृत भाषा में पद्यबद्ध . शैली में रचित भाष्य साहित्य नियुक्तियों के पारिभाषिक शब्दों में छिपे हुए अर्थबाहुल्य