________________ 224 / आर्हती-दृष्टि दिगम्बरों में जो प्रतिमाधारी एवं ब्रह्मधारी आदि होते हैं, उनमें भी मुख्यतया सामायिक करने का प्रचलन दृष्टिगोचर होता है / श्वेताम्बर-परम्परा में क्रमशः सामायिक आदि छहों आवश्यक करने की प्राचीन विधि का आज भी बहुत अधिक प्रचलन है / दैवसिक, रात्रिक, पाक्षिक, चातुर्मासिक एवं सांवत्सरिक प्रतिक्रमण करने का विधान श्वेताम्बरपरम्परा में है / श्रावक एवं साधु दोनों के लिए ही आवश्यक क्रिया का विधान है।" किन्तु साधु को तो प्रतिदिन सुबह-शाम अनिवार्य रूप से आवश्यक करना होता है। प्रथम एवं अन्तिम तीर्थंकर के साधुओं के लिए प्रतिदिन प्रतिक्रमण करने का विधान है, अन्य के लिए विकल्प है।" वर्तमान में आवश्यक शब्द के स्थान पर छहों आवश्यकों के लिए ही प्रतिक्रमण शब्द रूढ़ हो गया है / आवश्यक शब्द का बहुत कम प्रयोग होता है / प्रतिक्रमण शब्द ही बहुप्रचलित है। प्रतिक्रमण हेतु गर्भ, प्रतिक्रमण-विधि आदि अर्वाचीन ग्रन्थों में आवश्यक के लिए प्रतिक्रमण शब्द का प्रयोग ही उपलब्ध है / प्रमादवश शुभयोग से गिरकर अशुभयोग को प्राप्त करने के बाद पुनः शुभ योग को प्राप्त करना प्रतिक्रमण है।"अशुभ योग को छोड़कर उत्तरोत्तर शुभ योग में वर्तन करना भी प्रतिक्रमण है।" - आवश्यक सूत्र नित्य प्रति करने की क्रिया है अतः उसमें ज्ञानवृद्धि एवं ध्यान वृद्धि के लिए समय-समय पर उपयोगी पाठ जुड़ते रहे, अतः प्राचीन आवश्यक के पाठों का निर्धारण टीका के आधार पर ही किया जा सकता है। आवश्यक सूत्र पर विशाल व्याख्या साहित्य लिखा गया है। सबसे अधिक टीकाएं कल्पसूत्र एवं आवश्यक सूत्र पर ही लिखी गयी हैं / आवश्यक सूत्र पर लिखित व्याख्या साहित्य का संक्षेप दिशा दर्शनआवश्यक 'चैत्यवन्दन ललितविस्तर 'पंजिका 'टबा (देव कुशल) प्रान्तीय भाषा में आबद्ध को टबा कहा जाता है। वृत्ति (तरुणप्रभ) अवचूरि (कुलमण्डन) बालावबोध . नियुक्ति पीठिका बालावबोध विशेषावश्यकभाष्य