________________ 218 / आहती-दृष्टि आकाश, काल, पुद्गल और जीव / छह एवं नौ प्रकार के भेद के निरूपण के पीछे दो प्रकार की दृष्टियां हैं। जब हम जागतिक स्थिति को समझने का प्रयत्न करते हैं तब दो की संख्या छह हो जाती है। जहां लोक के बारे में वर्णन मिलता है वहां नव तत्त्व का उल्लेख ही नहीं है। छह द्रव्यों की ही व्याख्या प्राप्त होती है। - लोकस्थिति की जानकारी के लिए अजीव अन्तर्गत पदार्थों का जितना महत्त्व है उतना जीव की विभिन्न दशाओं का नहीं है / छहः द्रव्यों में जीव की अवस्थाओं का विभाग नहीं किया गया है। उनमें सिर्फ अजीव का वर्गीकरण किया गया है। आत्मा की मुक्ति कैसे हो सकती है? जीव या अजीव की कौन-सी अवस्थाएँ मुक्ति में बाधक एवं साधक हैं ? संसार मुक्ति की जिज्ञासा अर्थात् आत्मसाधना की जिज्ञासा इन दो तत्त्वों को नौ तत्त्वों में विभक्त कर देती है। पुण्य से लेकर मोक्ष तक के सात तत्त्व स्वतन्त्र नहीं है। जीव अजीव की अवस्था विशेष है। पुण्य, पाप और बन्ध ये पौद्गलिक हैं, इसलिए अजीव के पर्याय हैं ।आश्रव संवर, निर्जरा एवं मोक्ष ये जीव की पर्याय हैं / नव तत्त्वों में पहला तत्त्व जीव है और अन्तिम मोक्ष / जीव के दो प्रकार बतलाए गये हैं-बद्ध और मुक्त / बद्ध जीव पहला और मुक्त जीव अन्तिम तत्त्व है। अजीव जीव का प्रतिपक्ष है। वह बद्ध-मुक्त नहीं होता। कर्म का बन्धन पौद्गलिक होता है इसलिए साधना के क्रम में अजीव की जानकारी भी आवश्यक है। अजीव को जाने बिना संसार मुक्ति का उपाय नहीं जाना जा सकता। दशवैकालिक सूत्र में कहा गया है—'जो जीवे वि न याणाइ अजीवे विनं याणई जीवाजीवे अयाणतो कहं सो नाहइ सजम, संयम एवं अहिंसा का आचरण करने के लिए जीव एवं अजीव की अवगति अत्यन्त अपेक्षित है / बन्धन-मुक्ति की जिज्ञासा उत्पन्न होने पर जीव साधकतत्त्व और मोक्ष साध्यतत्त्व बनता है। शेष सारे तत्त्व मोक्ष मार्ग के साधक या बाधक बनते हैं। पुण्य-पाप, और बन्ध मोक्ष के बाधक हैं / आश्रव भी अपेक्षा भेद से साधक-बाधक दोनों माना जा सकता है। शुभयोग से कर्म निर्जरित होते हैं अतः यह साधक है किन्तु आश्रव का कर्म संग्राहक रूप तो मोक्षमार्ग का बाधक ही है। संवर और निर्जरा मोक्ष के साधक हैं। . ___ छह द्रव्यों में एक द्रव्य जीव और पांच द्रव्य अजीव तथा नौ तत्त्वों में 5 तत्त्व . जीव और 4 तत्त्व अजीव हैं / इससे यही सिद्ध होता है कि विश्व में मूल तत्त्व दो राशि ही हैं / जीव राशि और अजीव राशि / जीव राशि में सब जीव और अजीव राशि में सब अजीव समा जाते हैं अर्थात् सम्पूर्ण लोक का विस्तार इन दो राशियों में समाहित हो जाता है।