________________ नवतत्त्व : उपयोगितावाद सभी दार्शनिकों ने संसार के मूल पदार्थों पर चिन्तन किया है / उन्हीं मूल पदार्थों को भारतीय दर्शन में तत्त्व या पदार्थ कहा जाता है ।सभी दार्शनिकों ने भिन्न-भिन्न रूप से मूल तत्त्वों को स्वीकृति दी है / चार्वाक लोगों का मानना है कि पृथ्वी, पानी, अग्नि और वायु ये चार मूल तत्त्व हैं / बौद्ध दर्शन में भिन्न-भिन्न प्रस्थानों के फलस्वरूप विभिन्न प्रकार के तत्त्व स्वीकृत हैं / शून्यवादी केवल शून्य को, योगाचार केवल विज्ञान स्कन्ध को तथा अन्य बौद्ध पांच आन्तरिक स्कन्धों और चार बाह्य परमाणुओं को तत्त्व मानते हैं। दुःखं च संसारिण स्कन्धा ते च पञ्च प्रकीर्तिता। विज्ञानं वेदना संज्ञा संस्कारों रूपमेव च। भगवान् बुद्ध के अनुसार चार आर्यसत्य ही तत्त्व हैं। रामानुज सम्प्रदाय के अनुसार सभी पदार्थ प्रमाण और प्रमेय उन दो रूपों में विभक्त हैं। प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम ये प्रमाण है / द्रव्य, गुण एवं सामान्य प्रमेय हैं / इनके उत्तरभेद अनेक हैं / मध्व सम्प्रदाय के अनुसार द्रव्य, गुण आदि दस तत्त्व हैं / नैयायिक सोलह तत्त्व मानता है। " वेशैषिक का सात पदार्थों का अभ्युपगम है। सांख्य दर्शन संक्षेप में प्रकृत्यात्मक,. विकृत्यात्मक, उभय एवं अनुभय स्वरूपवाले चार भागों में विभक्त तत्त्व को मानता है। उनका विस्तृत रूप ही 25 तत्त्व हैं। अद्वैत वेदान्त में पदार्थ एकात्मक है वह ब्रह्ममय है / इसके अनुसार द्वैत की प्रतीति अनादि अविद्या के कारण कल्पित है / जैन दर्शन द्वैतवादी दर्शन है। उसके मूल में जीव एवं अजीव ये दो तत्त्व हैं किन्तु विवक्षा भेद से उनके छः सात या नौ भेद हो जाते हैं। - मोक्ष साधना के उपयोगी ज्ञेयों को तत्त्व कहा जाता है / वे नौ हैं—जीव, अजीव, पुण्य, पाप, आश्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध और मोक्ष / उमास्वाति ने तत्त्वों की संख्या सात स्वीकृत की है। पुण्य-पाप का अन्तर्भाव बन्ध तत्त्व के अन्तर्गत किया है / संक्षेप दृष्टि से तत्त्व दो ही हैं—जीव और अजीव / सात या नौ का विभाग उन्हीं का विस्तार है। पुण्य-पाप बन्ध के अवान्तर भेद हैं। उनकी स्वतन्त्र विवक्षा हो तो तत्त्व नौ और स्वतन्त्र विवक्षा न हो तो वे सात होते हैं। उनके छः भेद भी उपलब्ध होते हैं-धर्म, अधर्म,