________________ कर्म सिद्धान्त और क्षायोपशमिक भाव / 209 में प्रदत्त व्यक्तित्व की मीमांसा भी पांच भावों के साथ समीक्षणीय है। जैनेतर दर्शन में भी भावों के सदृश विचारों का उल्लेख हुआ है / मुख्यतः पातञ्जल योग सूत्र में ऐसे विचार उपलब्ध हैं / जैनन्याय के विशिष्ट विद्वान् उपाध्याय यशोविजय जी ने पातञ्जल योग-सूत्र पर टीका लिखी है। उसमें उन्होंने इन भावों के साथ क्लेशों के आविर्भाव एवं तिरोभाव अवस्था की तुलना की है। उन्होंने अविद्या, अस्मिता, राग-द्वेष एवं अभिनिवेश इन पाँच क्लेशों को मोहनीय कर्म का उदय माना है / पतञ्जलि के अनुसार क्लेश प्रसुप्त, तनु, विच्छिन्न एवं उदार—इन चार रूपों में विद्यमान रहते हैं।२३ उपाध्यायजी के अनुसार क्लेश की प्रसुप्तावस्था जैन मान्य अबाधाकाल सदृश है। तनु अवस्था उपशम अथवा क्षयोपशम स्थानीय है। उदार अवस्था उदय के तुल्य पातञ्जल योग में असंप्रज्ञात समाधि, भवप्रत्यय एवं उपाय प्रत्यय के भेद से दो प्रकार की स्वीकृत है।" भवप्रत्यय समाधि विदेह एवं प्रकृतिलीन पुरुषों के होती है / 26 जब तक चित्त पुनरावर्तित नहीं होता है तब तक इस समाधि में कैवल्य सदृश पद का अनुभव होता है किन्तु निर्धारित समय के पश्चात् पुनः वृत्तियों का आविर्भाव हो जाता है, अतः भवप्रत्यय समाधि की तुलना जैन मान्य उपशम भाव से की जा सकती है। उपाय-प्रत्यय समाधि योगियों के होती है। साधक श्रद्धा, वीर्य, स्मृति, समाधि तथा प्रज्ञा–इन उपायों के द्वारा असंप्रज्ञात समाधि को प्राप्त करता है। श्रद्धा आदि उपायों के द्वारा पुरुषार्थ पूर्वक साधक क्लेशों को क्षय करता हुआ अन्त में असंप्रज्ञात समाधि को उपलब्ध होता है / समाधि प्राप्ति की प्रयत्नावस्था को क्षयोपशम एवं उसकी प्राप्ति की अवस्था की तुलना क्षायिक भाव से की जा सकती है। . भौतिक वैज्ञानिक भी आज 'क्वांटम' के आधार पर आन्तरिक भावों की प्रस्तुति कर रहे हैं / डेविड बोम के अनुसार, हमारे भीतर एक सहज आनन्द की स्थिति हैं किन्तु जब चिन्तन एवं इन्द्रिय संवेदन/सुख प्रबल हो जाते हैं तब वह आदृत हो जाता है / जब बाह्य चिन्तन एवं सुखैषणा रूप संवेदना शान्त हो जाती है तब भीतर आनन्द प्रकट हो जाता है / बाह्य चिन्तन एवं इन्द्रिय संवेदना को औदयिक भाव रूप माना जा सकता है तथा आन्तरिक ज्ञान एवं आनन्द की अभिव्यक्ति क्षयोपशम भाव के सदृश स्वीकार की जा सकती है। भौतिक विज्ञान के नियम भी अध्यात्म की ओर बढ़ रहे हैं, ऐसा प्रतीत हो रहा है। पारिणामिक भाव अस्तित्व का घटक तत्त्व है / पारिणामिक भाव के कारण वस्तु का अस्तित्व कभी नष्ट नहीं हो सकता। क्षायोपशमिक भाव व्यक्तित्व का निर्माता है।