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________________ 20/ आर्हती-दृष्टि व्यवहार उसमें विकास के अभिनव स्पन्दन प्रस्फुटित करता है / आप द्वारा प्रेरणा-पाथेय प्राप्त कर निरन्तर प्रगति के पथ पर बढ़ती रहूं, यह मेरा अभिलषित है। प्रस्तुत पुस्तक 'आर्हती-दृष्टि' परम पूज्य आचार्यवर के चरणों में बैठकर जो कुछ सीखा, उसकी प्रतिध्वनिमात्र है / 'तेरा तुझको सौंपते क्या लागत है मोय' की अभिव्यक्ति मेरा समर्पण सूत्र है। इसमें जो कुछ श्रेय है वह इस अध्यात्म-चतुष्ट्यी का है। मैं इनके प्रति कृतज्ञता का उपचार निभाना नहीं चाहती अपितु इनका अनुशासन, आशीर्वाद, वात्सल्य एवं प्रेरणा मेरे सृजन कर्म को संवर्धित करने में निमित्त बने, यही हार्दिक आकांक्षा है। जैन-विश्व-भारती के शान्त, स्वच्छ, आध्यात्मिक परिसर में समणी नियोजिका जी एवं सभी समणीजी का सहज, आत्मीय सहकार प्राप्त कर आन्तरिक प्रसन्नता की अनुभूति होती है। ___ इस पुस्तक के निरीक्षण एवं परीक्षण में जैन दर्शन एवं वेद-विज्ञान के लब्धप्रतिष्ठ एवं ख्यातनामा विद्वान् आदरणीय डॉ. दयानन्द भार्गव का अमूल्य मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। उन्होंने इस पुस्तक की भूमिका लेखन में अपने अमूल्य क्षणों का नियोजन करके प्रस्तुत कृति की मूल्यवत्ता को वृद्धिंगत किया है। इसके लिए उनके प्रति हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करती हूँ / जिनका भी प्रत्यक्ष एवं परोक्ष में सहकार प्राप्त हुआ है, उन सभी के प्रति विनम्र कृतज्ञ प्रणति / मैं निरन्तर इस क्षेत्र में गति करती रहूँ, इसी मंगल एवं शुभकामना के साथ समणी मंगलप्रज्ञा गौतम ज्ञानशाला जैन विश्व भारती लाडनूं 5 अप्रेल 1998
SR No.004411
Book TitleAarhati Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year1998
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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