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________________ परिष्कृत रूप प्रस्तुत पुस्तक 'आहती- दृष्टि' है। / विभिन्न कालखण्डों में लिखित इन निबंधों को पुस्तक रूप देने की न कल्पना थी न ही ऐसा लक्ष्य था, किंतु एक संयोग मिला और वे लेख पुस्तकाकार में प्रस्तुत हैं। प्रस्तुत कृति में द्रव्य-मीमांसा, अनेकान्त, ध्यान, अनुप्रेक्षा, स्याद्वाद, नय, निक्षेप एवं ज्ञान-मीमांसा आदि विषयों से सम्बद्ध लेख समाविष्ट है। प्रस्तुत प्रयास दर्शन की जिज्ञासा को संवर्धित करने में सहयोगी बन सके, यही मेरे श्रम की सार्थकता है। आभार-प्रस्तुति - आस्था के अमिटधाम परमश्रद्धेय पूज्य गुरुदेव श्री तुलसी शक्ति के महापुञ्ज थे। उनके कण-कण से ऊर्जा का ऊर्जस्वल प्रवाह सतत प्रवाहित था। उनकी अमियपगी सन्निधि में आगम-अमृत का निर्झर अविरल गतिशील था। उस आलोकपुञ्ज की अमृत-सन्निधि में रहने एवं गुरुदेव के श्रीमुख से अनेक ग्रंथों की वाचना प्राप्त करने का अपूर्व सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ। उस दिव्यात्मा के प्रति शाब्दिक कृतज्ञता ज्ञापित , कर उपचार निभाना नहीं चाहती अपितु उनसे प्राप्त प्रेरणा के आधार पर अध्यात्म एवं ज्ञान के क्षेत्र में निरन्तर प्रयत्नशील बनी रहं, यही हार्दिक अभीप्सा है। .अध्यात्म एवं दर्शन के शिखर पुरुष, श्रद्धा और समर्पण के महासुमेरु प्रज्ञा-पुरुष आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी का प्रज्ञा आलोक सम्प्रति जन-जन में शांति एवं चित्त समाधि का अभिनव प्रसाद वितरित कर रहा है। आपका आगम, अध्यात्म एवं दर्शन का गहनगम्भीर ज्ञान उस दिशा में प्रस्थान करने वालों के लिए आलोक-स्तम्भ है / अपने शिष्य समुदाय को विभिन्न क्षेत्रों में विशेषज्ञता प्राप्त करवाने के लिए आप कृत-संकल्प हैं। आपके सागरवरगंभीरा एवं चंदेसु निम्मलयरा जैसे उदात्त प्रभास्वर व्यक्तित्व के * प्रज्ञामण्डल में बैठकर अध्यात्म एवं दर्शन के अमृत-कण बटोरने का अनमोल अवसर मुझे प्राप्त हुआ है / यह अवसर मुझे सतत उपलब्ध होता रहे एवं आपश्री के मंगल आशीर्वाद से मैं सतत. विकास के मार्ग पर गतिशील बनी रहूं, यही कामना है। . तेरापंथ धर्मसंघ के नवोदित सूर्य परमपूज्य युवाचार्यश्री महाश्रमणजी अध्यात्म शक्ति के प्रतीक हैं। उनके अध्यात्मोन्मुखी व्यक्तित्व से अध्यात्म की प्रखर प्रेरणा स्वत: स्फूर्त है / उनका प्रसन्न एवं प्रशांत आभावलय साधक में अभिनव उल्लास का संचार कर देता है / आपसे प्राप्त प्रेरणा जीवन विकास का पाथेय बनती रहे, यह काम्य है। / परमश्रद्धेया संघ महानिदेशिका महाश्रमणी साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभाजी साध्वी समाज का गौरव है। आपके महिमा मण्डित व्यक्तित्व एवं नेतृत्व ने साध्वी समाज कों / गरिमापूर्ण ऊंचाइयां प्रदान की है। संघ के हर सदस्य के प्रति आपका वात्सल्यपूर्ण
SR No.004411
Book TitleAarhati Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year1998
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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