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________________ काल स्वभावादि पंचक / 201 प्राप्तव्यो नियतिबलाश्रयेण योऽर्थः सोऽवश्यं भवति नृणां शुभाशुभो वा। भूतानां महति कृतेऽपि प्रयत्ने, नाऽभाव्यं भवति न भाविनोऽस्ति नाशः // नियति का तात्पर्य ही है सार्वभौमिक नियम जो निश्चित रूप से सब पर लागू होते हैं। 4. कर्मवाद ___ अदृष्टवादी के अनुसार वर्तमान में प्राप्त सम्पूर्ण अवस्थाओं का कारण पूर्वकृत कर्म ही हैं। प्राणी अपने जीवन में स्वाधीन नहीं है, उसकी प्रवृत्ति के पीछे पूर्वकृत कर्म की ही प्रेरणा है- . स्वकर्मणा युक्त एव सर्वो हात्पद्यते नरः / स तथाऽकृष्यते तेन न यथा स्वयमिच्छति // दो व्यक्ति एक ही स्थान में उत्पन्न हुए हैं एक जैसा उनको विकास का वातावरण उपलब्ध है इसके बावजूद उन दोनों की प्रगति में आकाश-पातल का अन्तर परिलक्षित है। इसका कारण पूर्वकृत कर्म ही है। .. न भोक्तव्यतिरेकण भोग्यं जगति विद्यते / . न चाकृतस्य भोगः स्यान्मुक्तानां भोगभावतः॥ जगत् में भोक्ता के बिना भोग्य वस्तु का अस्तित्व ही नहीं है / जिसने कर्म ही * नहीं किये वह फल भोक्ता नहीं हो सकता / यदि कर्म किए बिना ही फल भोग सम्भव हो तो मुक्त जीवों को भी संसारगत वस्तुओं का भोग प्राप्त होता है / प्राणियों को भोग सामग्री स्वकृत कर्मों के अनुसार ही उपलब्ध होती है / अतः यह स्पष्ट है कि इस जगत् का कारण कर्म ही है। नियति भी कर्म के ही अधीन है। 5. पुरुषवाद .. पुरुषवादी के अनुसार पुरुष ही इस जगत् का कारण है / जैसे मकड़ी जाले के सब तन्तुओं को पैदा करती है / उसी प्रकार ईश्वर ही जगत् का कर्ता, धर्ता एवं संहर्ता है। हमें कारण रूप में जो वस्तुएं दिखलाई देती हैं वे भी पुरुषायत्त हैं___ पुरुषो जन्मिन हेतुर्नोत्पत्तिविकल्पत्वतः / गगनाम्भोजवत् सर्वमन्यथा युगपद् भवेत् / / सम्पूर्ण उत्पत्तिशील पदार्थों का कारण पुरुष है, यदि पुरुष को कर्ता न माना जाए
SR No.004411
Book TitleAarhati Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year1998
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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