________________ 200 / आर्हती-दृष्टि नहीं किन्तु स्वभाव है / उसका मानना है कि काल आदि सामग्री का सहकार होने पर भी बिना स्वभाव के कार्य नहीं हो सकता। एक मुद्ग जो कोरटू है उसका पकने का स्वभाव नहीं है, उसको अनन्तकाल का योग मिलने पर भी उसमें पाचन क्रिया नहीं हो सकती क्योंकि उसका पकने का स्वभाव ही नहीं है। अतएव यह निश्चित है कि कार्यमात्र का कारण स्वभाव है। कहा भी है कः कण्टकानां प्रकरोति तैक्ष्ण्यं विचित्रभावं मृगपक्षिणां च। स्वभावतः सर्वमिदं प्रवृत्तं न कामचारोऽस्ति कुतः प्रयत्नः / / कांटों की तीक्ष्णता, पक्षियों की गगनगामिता ये सब स्वभाव के कारण ही हैं। स्वभाव के बिना ये नहीं हो सकते। बदर्याः कण्टकस्तीक्ष्ण ऋजुरेकश्च कुञ्चितः। फलं च वर्तुलं तस्या वद केन विनिर्मितम्॥ 3. नियतिवाद नियतिवादी के अनुसार नियति ही इस संसार का कारण है। जगत् की सभी वस्तुएं नियत आकार वाली हैं। एक मनुष्य के आँख, नाक आदि नियत स्थान पर ही क्यों होते हैं? यदि नियति को इनका कारण न माना जाए तो अनियतता के कारण कभी आंख पीछे हो जाएगी, सिर नीचे, पैर ऊपर हो जाएगे। संसार में अत्यधिक अव्यवस्था हो जाएगी। संसार में हम जितने भी कार्य देखते हैं उनके पीछे नियति ही कारण है। काल से कार्य नियत रूप से पैदा नहीं होते। काल से भी ज्यादा प्रबल स्वभाव है / नियति इन दोनों से प्रधान है / वही इन दोनों की नियामक है / एक व्यक्ति जिसको तीक्ष्ण शास्त्रों से उपहत किया गया फिरभी उसके मरण नियति का अभाव होने से वह जीवित दिखाई देता है तथा एक अन्य व्यक्ति जिसका मरणकाल निश्चित हो गया है शस्त्र आदि के द्वारा घात न होने पर भी वह मृत्यु को प्राप्त कर लेता है। यद् यदैव यतो यावत् तत् तदैव तस्तथा। नियतं जायते न्यायात् क एतां बाधितुं क्षमः / / जिस वस्तु को जिस समय जिस परिमाण में होना होता है वह वैसे ही नियम रूप में पैदा होती हुई देखी जाती है। ऐसी स्थिति में नियति के सिद्धान्त का अपलाप करने में कौन समर्थ है / भवितव्यता भवत्येव' यह नियति का ही सिद्धान्त है / नियति को टालने में कोई समर्थ नहीं है