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________________ काल स्वभावादि पंचक यह दृश्यमान् चराचर जगत् एक कार्य है, जो कार्य होता है उसका कारण भी निश्चित रूप से कोई अवश्य होता है। कारण के बारे में विविध प्रकार के चिन्तन हमें दार्शनिक क्षेत्र में उपलब्ध है। भारत के प्राचीन दार्शनिक साहित्य में जगत् रूप कार्य की, कारण मीमांसा में मुख्यतया पांच वाद उपलब्ध होते हैं-काल, स्वभाव, नियति कर्म एवं पुरुष / ये पांचों अपने-अपने मन्तव्य के आधार पर जगत् की व्याख्या प्रस्तुत करते हैं। काल, स्वभाव और नियति ये तीनों हमारे जीवन में घटित होने वाली दैनिक घटनाओं को आधार बनाकर अपनी व्याख्या प्रस्तुत करते हैं। जो घटित घटना है उसके कार्य-कारण का सम्बन्ध अपने अनुसार प्रस्तुत करते हैं / कर्मवाद का सम्बन्ध हमारे जीवन में घटित होने वाली उन घटनाओं से है जिनका कारण वर्तमान में उपलब्ध नहीं हो रहा है। पुरुषवादी (ईश्वरवादी) प्रत्येक घटना की व्याख्या ईश्वर के आधार पर ही करता है। 1. कालवाद - कालवादियों का मानना है कि इस सम्पूर्ण जगत् का कर्तृत्व काल में निहित है। सर्दी, गर्मी, वर्षा का होना बाल्य, यौवन आदि अवस्था सब काल के कारण ही हैं। यदि काल नहीं होता तो न जन्म होता, न मृत्यु / संसार की सारी व्यवस्था ही अव्यवस्थित हो जाती / जगत् का विकास ही नहीं हो पाता / उदाहरण प्रस्तुत करते हुए कहा गया कि काल के अतिरिक्त सम्पूर्ण कारण सामग्री के उपस्थित रहने पर भी मुद्ग तक का परिपाक नहीं होता है। इससे स्पष्ट सिद्ध होता है कि जगत् का कारण काल है कालः पचति, भूतानि, कालः संहरति प्रजाः। कालः सुप्तेषु जागार्ति, कालो हि दुरतिक्रमः / / ____ जगत् की स्थिति, उत्पत्ति एवं संहार इन सबका कारण काल ही है अतएव काल की सीमा का उल्लंघन करना असम्भव है। 2. स्वभाववाद कालवादी के विपरीत स्वभाववादी का कहना है कि इस जगत् का कारण काल .
SR No.004411
Book TitleAarhati Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year1998
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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