________________ 190 / आर्हती-दृष्टि क्रम विकासवादी वैज्ञानिक इसी अभिमत के समर्थक हैं। .. चैतन्याद्वैत चेतन तत्त्व को ही सृष्टि का मूल कारण मानता है। चेतन इतर अन्य तत्त्व का अस्तित्व उसे मान्य नहीं है / यह सम्पूर्ण जगत् ब्रह्ममय है / संसार का नानात्व असत्य है / 'सर्वं खल्विदं ब्रह्म, नेह नानास्ति किञ्चन' ब्रह्म ही एकमात्र सत्य है / अविद्या के कारण उसमें अनेक की प्रतीति होती है / अचेतन का अस्तित्व ही इनको मान्य नहीं द्वैतवादी दर्शन जड़ और चेतन का स्वतन्त्र अस्तित्व स्वीकार करते हैं। उनके अनुसार इन दो विरोधी तत्त्वों की समन्विति ही संसार है। नैयायिक, वैशेषिक और मीमांसक सृष्टि पक्ष में आरम्भवादी है / जड़ और चेतन अनादिकाल से है / परमात्मा सृष्टि के प्रारम्भ में परमाणुओं को संयुक्त करता है। इनके संयोग का आरम्भ होने पर ही सष्टि होती है। इसलिए यह आरम्भवाद कहलाता है। सांख्य और योग परिणामवादी है / उनके अनुसार सृष्टि का कारण त्रिगुणात्मिका प्रकृति है / ईश्वर के द्वारा प्रकृति को क्षुब्ध किये जाने पर त्रिगुण का विकास होता है। पुरुष संयोग से प्रकृति की साम्यावस्था समाप्त हो जाती है और इससे संसार का विकास होता है। सांख्य का पुरुष अपरिणामी कूटस्थ है / अतएव सृष्टि का विकास परिणामधर्मा नित्य प्रकृति से ही होता है। जैन और बौद्ध दर्शन सृष्टिवादी नहीं हैं। वे परिवर्तनवादी हैं / बौद्ध दर्शन में परिवर्तन की प्रक्रिया प्रतीत्यसमुत्पाद' है। इसमें कारण से कार्य उत्पन्न नहीं होता किन्तु सन्तति प्रवाह में पदार्थ उत्पन्न होते हैं। जैन दर्शन के अनुसार जीव अजीव की समन्विति ही विश्व है। भगवान महावीर से पूछा गया लोक क्या है ? उन्होंने कहा—जीव और अजीव ही लोक है / जीव और अजीव अनन्त एवं शाश्वत है / जो शाश्वत होते हैं उनमें पौर्वापर्य नहीं होता / जैसे जीव और वृक्ष में पौर्वापर्य नहीं है / जैन को सृष्टिवाद का वह सिद्धान्त मान्य नहीं है जिसका कोई कर्ता हो / उसके अनुसार पदार्थों में नियतिवाद है। लोक की विविधता का हेत जीव और पुद्गल का संयोग है / इस विविधरूपता को ही सृष्टि कहा जाता है / दीपिका में कहा गया—'जीवपुद्गलयोविविधसंयोगैः स विविधरूपः इयं विविधरूपता एव सृष्टिरिति कथ्यते'। जैन आगम साहित्य में लोक की अनेक परिभाषाएं उपलब्ध हैं / भगवती-सूत्र में कहा गया—'जे लोक्कइ से लोए', पञ्चास्तिकायमयो लोकः' अथवा 'षड्द्रव्यातत्मको लोकः' यह दृश्यमान जगत् शाश्वत भी है अशाश्वत भी है / यह जैन दर्शन का अभ्युपगम