________________ लोकवाद : विकास का सिद्धान्त विश्व के आदि बिन्दु, मूल तत्त्व की जिज्ञासा ने दार्शनिक क्षेत्र में एक नया आयाम उद्घाटित किया है। विश्व प्रहेलिका को सुलझाने का प्रयल भारतीय एवं पाश्चात्य दोनों दार्शनिकों ने किया है। दृश्यमान जगत् का कारण क्या है? यह क्यों है? ऐसे प्रश्न दर्शन के जनक माने जाते हैं। कार्य कारणवाद के सिद्धान्त पर तत्त्व का निर्णय करना दार्शनिक क्षेत्र की विशेषता है / यह जगत् एक कार्य है। कारण की व्याख्या विभिन्न दार्शनिकों ने भिन्न-भिन्न प्रकार से की है। पाश्चात्य दर्शन के जनक थेलिज ने विश्व के मूल कारण के रूप में जल तत्त्व को स्वीकृति दी। उसके अनुसार यह सम्पूर्ण दृश्यमान जगत् जल तत्त्व का ही परिवर्तित रूप है। इसके मूल में जल ही है। एनेगजीमेनीज ने वायु तत्त्व को विश्व का मूल कारण स्वीकार किया तथा पाइथागोरस ने संख्या को, हेरेक्लाइट्स ने अग्नि तत्त्व को विश्व का उपादान कारण स्वीकार किया। सर्वेश्वरवादी जेनोफेनीज ने जल को विश्व के कारण के रूप में स्वीकृति दी। - एनेग्जीमेण्डर की विश्व व्याख्या भारतीय जड़ाद्वैत के सिद्धान्त के सदृश है / उसने असीम जड़ तत्त्व को मूल द्रव्य के रूप में स्वीकृति दी है। उसके अनुसार यह असीम जड़ तत्त्व निर्गुण, निराकार, निर्विशेष तथा अविभक्त द्रव्य है / एनेग्जीमेण्डर के अनुसार सबसे पहला जीव नमी तत्त्व से पैदा हुआ था तथा मनुष्य एवं अन्य प्राणियों का आदि रूप मछली था। उनकी यह धारणा आधुनिक विकासवाद के सिद्धान्तों से बहुत अंशों में मिलती है। चार्ल्स डार्विन के विकासवाद के सिद्धान्त के बहुत पूर्व बिना किसी ठोस वैज्ञानिक आधार के इस प्रकार की अवगति निःसन्देह महत्त्वपूर्ण है। ये सारे दार्शनिक प्रायः सृष्टिवाद के सम्बन्ध में एक तत्त्ववादी है। भारतीय दर्शन जगत् में दो धाराएं प्रमुख रही हैं—द्वैतवाद और अद्वैतवाद / अतः उनको विश्व सम्बन्धी व्याख्या की पृष्ठभूमि अद्वैत या द्वैत है। . . ____ अद्वैतवादी धारा में जड़ाद्वैत तथा चैतन्याद्वैत ये दो मुख्य धाराएँ रही हैं / जड़ाद्वैत पाश्चात्य दार्शनिक एनेग्जीमेण्डर की तरह जड़ तत्त्व को ही सृष्टि का उपादान कारण मानता हैं / जड़ाद्वैतवाद के अनुसार चेतन तत्त्व की उत्पत्ति अचेतन तत्त्व से हुई है। चार भूतों के विशिष्ट संयोग से चेतन तत्त्व उत्पन्न होता है / अनात्मवादी चार्वाक और