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________________ . 188 / आहती-दृष्टि मूल भंग सात ही है। उनकी संख्या नहीं बढ़ सकती जो भगवती में अतिरिक्त भंग उपलब्ध हो रहे हैं, वे उन्हीं सात भंगों के उपभंग हैं। प्रदेश के आधार पर उनको मिलाकर भंगों की संख्या का विकास दिखाया गया है। वस्तुतः मौलिक भंग सात ही हैं जिनका स्वरूप वर्तमान में हमें उपलब्ध है। भगवती के अनुसार विशेष ध्यान देने योग्य बात यह है कि परमाणु (इकाई) के तीन से अधिक भंग नहीं हो सकते क्योंकि वह एक प्रदेशी है / अर्थात् अस्ति-नास्ति यह संयुक्त भंग परमाणु में सम्भव नहीं है वह द्विप्रदेशी स्कन्ध में ही सम्भव है। इसी प्रकार ‘अस्ति, नास्ति, अवक्तव्य इन तीनों का संयुक्त भंग द्विप्रदेशी में सम्भव नहीं है यह भंग त्रिप्रदेशी से बन सकता है / यह भगवती सूत्र का मंतव्य है / बाद के दार्शनिकों के विचारों में हमें परिवर्तन उपलब्ध होता है / उन्होंने सातों ही भंग सब वस्तुओं में घटित किये हैं। चाहे वह वस्तु Composite हो अथवा non-composite / तथा तीसरे एवं चौथे भंग के क्रम में भी किसी-किसी ने परिवर्तन किया है। भगवती में अवक्तव्य तीसरा भंग है तथा किन्हीं दार्शनिकों ने उसे चौथे स्थान पर भी स्वीकार किया है। . निष्कर्षतः हम कह सकते हैं कि भगवती में प्राप्त भंग ही वर्तमान सप्त भंगी के आधार है। उनमें जो वुछ भी परिवर्तन दृष्टिगोचर हो रहा है वह विचार विकास की सूचना दे रहा है।
SR No.004411
Book TitleAarhati Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year1998
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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