________________ स्यावाद / 183 विरोध का समन्वय करता है / वस्तु में सत्, असत्, नित्य, अनित्य आदि विरोधी धर्म विद्यमान है / स्याद्वाद वस्तु के उस स्वरूप की सापेक्ष व्याख्या करता है जो वस्तु सत् है, वही असत् भी है किन्तु जिस रूप से सत् है उस रूप से असत् नहीं है / स्व द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव की अपेक्षा वस्तु सत् परचतुष्ट्य की अपेक्षा वह नास्ति रूप है। दो निश्चित दृष्टि बिन्दुओं के आधार पर वस्तु तत्त्व का प्रतिपादन करनेवाला वाक्य संशय रूप नहीं हो सकती / स्याद्वाद को अपेक्षावाद या कथंचित्वाद भी कहा जा सकता है। ___ 'स्यादस्ति घटः' इस वाक्य में अस्ति पद वस्तु के अस्तित्व धर्म का वाचक है और स्यात् पद उसमें रहनेवाले नास्तित्व आदि शेष धर्मों का द्योतन करता है / स्यात् शब्द वस्तु का अस्तित्व किस अपेक्षा से है / इसके प्रतिपादन के साथ यह भी स्पष्ट करता है कि अस्ति के अतिरिक्त भी वस्तु में अन्य धर्म है अतः आचार्य सम्मन्तभद्र ने कहा—'स्यात् सत्' इत्यादि वाक्यों में स्यात् शब्द अनेकान्त का द्योतक एवं गम्य अर्थ का समर्थक होता है। स्याद्वाद वस्तु के अनन्त धर्मों का प्रतिपादन सातभंगों और नयों की अपेक्षा से ही करता है ‘सप्तभंगनयापेक्षः स्याद्वादः / ' सप्तभंगी के द्वारा स्याद्वाद वस्तु की व्यवस्था करता है। अनेकान्त एवं स्याद्वाद में अन्तर - अनेकान्तवाद और स्याद्वाद को यद्यपि पर्यायवाची मान लिया जाता है किन्तु दोनों में अन्तर है। अनेकान्त एक व्यापक विचार पद्धति है और स्याद्वाद उस विचार पद्धति की अभिव्यक्ति का निर्दोष मार्ग है। अनेकान्त दर्शन है और स्याद्वाद उसकी * अभिव्यक्त का ढंग है / अनेकान्तवाद के द्वारा वस्तुतत्त्व के जिन अनन्त धर्मों का बोध होता है उनमें से किसी एक धर्म को दूसरे धर्मों का प्रतिषेध किए बिना प्रस्तुत करना ही स्याद्वाद है / स्याद्वाद का सिद्धान्त सुव्यवस्थित और व्यावहारिक है। यह अनन्त धर्मात्मक वस्तु की विभिन्न दृष्टिकोणों से व्यवस्था करता है / एक ही मनुष्य में अपेक्षा भेद से पितृत्व, पुत्रत्व आदि विरोधी धर्मों का युगपद् अस्तित्व सम्भव है / आपेक्षिक व्यवहार का नाम ही स्याद्वाद है / अनेकान्त और स्याद्वाद ये पर्यायवाची नहीं हैं किन्तु इनमें परस्पर प्रतिपाद्य प्रतिपादक सम्बन्ध है / स्याद्वाद प्रतिपादक है / अनेकान्त प्रतिपाद्य है। जैन दर्शन का आधार-स्तम्भ अनेकान्त एवं स्याद्वाद ही है / जागतिक एवं वार्तमानिक समस्याओं का समाधान अनेकान्त एवं स्याद्वाद के आलोक में प्राप्त किया जा सकता