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________________ 178 / आर्हती-दृष्टि ... का अवलम्बन लेकर तत्त्व को प्रतिपादित किया है / बुद्ध एकान्ततः विभज्यवादी नहीं थे, ऐसा बौद्ध ग्रन्थों में आगत उल्लेखों से आपाद् दृष्टि से ऐसा प्रतीत होता है। बौद्ध साहित्य में चतुर्विध प्रश्नों का उल्लेख है। इससे ज्ञात होता है कि बुद्ध प्रश्नों का उत्तर चार प्रकार से तर्कानुकूल देते थे। सम्प्रति 'मिलन्द प्रश्न' में आगत सन्दर्भ का उल्लेख करना उचित होगा। चार प्रकार के प्रश्न होते हैं... (1) एकांश व्याकरणीय यथा-'क्या रूप अनित्य होता है। इसका समाधान होगा 'हाँ' क्योंकि रूप अनित्य होता है / एकांश व्याकरणीय उसे कहा जाता है जिसका किसी एक निश्चित पक्ष में उत्तर दिया जा सके। (2) विभज्यव्याकरणीय; यथा—'अणिच्चपन रूपं क्या अनित्यता रूप होती है? यहां समाधान होगा अनित्यता रूप होती है तथा रूप के अतिरिक्त भी होती है क्योंकि अनित्यता वेदना संज्ञा आदि में भी है / जहां प्रश्न का उत्तर विभागपूर्वक दिया जाता है वह विभज्यवचनीय है। ___(3) प्रतिपृच्छा व्याकरणीय; यथा-किं नु खो चक्खुना सव्वं विजानाती? यहां प्रतिप्रश्न के साथ समाधान होगा। सर्व से आप कहना क्या चाहते हैं ? क्या चक्षु सारे रूप को जानती है ?क्या चक्षु सूक्ष्म या स्थूल सारे रूप को जानती है / तब उत्तर होगा . चक्षु सूक्ष्म रूप को नहीं जानती। वह केवल स्थूल रूप को जानती है। (4) स्थापनीय; यथा— 'सस्सतो लोको' यह स्थापनीय प्रश्न है। जिसका उत्तर नहीं होता क्योंकि स्थापनीय प्रश्न तो इस प्रकार का है कि क्या वन्ध्या का पुत्र काला होता है या गौरा? जब पुत्र ही नहीं है तो काले-गोरे का प्रश्न ही नहीं होता। अतः यह प्रश्न ही सम्यक् नहीं है / इसलिए बुद्ध ने 14 प्रकार के अव्याकृत प्रश्न कहे हैं। उनका उत्तर नहीं हो सकता। जो स्थापनीय प्रश्न है वह ही अव्याकृत प्रश्न है। अभिधर्म कोश में भी चार प्रकार के प्रश्नों का उल्लेख है। उनके नाम वे ही है, प्रयोजन भी वही हैं किन्तु उदाहरण में भिन्नता है, यथा (1) सारे सत्त्व मरेंगे? मरेंगे। (2) क्या सब जन्म लेंगे? संक्लेशयुक्त जीव जन्म लेंगे। क्लेश रहित जन्म नहीं लेंगे। यह विभज्यवचनीय है। (3) क्या मनुष्य विशिष्ट है या हीन? प्रतिप्रश्न के द्वारा उत्तर होता है किसकी अपेक्षा से? पशु से विशिष्ट है देवता से हीन है। (4) सत्त्व स्कन्ध से भिन्न है या अभिन्न ? यह स्थापनीय है क्योंकि सत्त्व (द्रव्य) का ही अभाव है।
SR No.004411
Book TitleAarhati Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year1998
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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