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________________ विभज्यवाद / 177 होती हैं उतने ही प्रकार से उसका समाधान किया जाता है। एक दृष्टि से ऐसा हो सकता है दसरी अपेक्षा से ऐसा नहीं हो सकता है। 'जावइया वयणपहा तावइया चेव होति णयवाया' यह सारा विश्लेषण विभज्यवाद के आधार पर ही सम्भव है। ___ भारतीय दर्शन का चिन्तन बहुत बार एक दिशा में प्रवाहित होता हुआ-सा प्रतीत होता है। विभज्यवाद की अवधारणा भी उस सम्मिलित चिन्तन की एक स्फुरणा है। विभज्यवाद का चिन्तन उस समय के दार्शनिक वातावरण में था जिसका आभास तत्कालीन साहित्य का अवलोकन करने से स्पष्ट हो गता है। पातञ्जल योगभाष्य में तीन प्रकार के प्रश्नों का उल्लेख है-एकान्तवचनीय, विभज्यवचनीय एवं अवचनीय / भाष्यकार ने इन प्रश्नों को व्याख्यायित करते हुए कहा कि 'सर्वो जातो मरिष्यति? ओम्।' इस प्रकार के प्रश्न एकान्तवचनीय हैं / अथ : सर्वो मृत्वा जनिष्यति इति? प्रत्युदितख्याति क्षीणतृष्ण कुशल जन्म नहीं लेंगे किन्तु अकुशल मर करके जन्म लेंगे। इस प्रकार के प्रश्न विभज्यवचनीय है। संसार शान्त है या अनन्त ? यह अवचनीय प्रश्न है / परन्तु इस प्रश्न को अवचनीय कहकर के पुनः विभज्यवचनीय कह देते हैं / भाष्य में ऐसा उल्लेख है कि कुशल का संसार शान्त है कशलेतर का संसार शान्त नहीं है। इस प्रकार अवचनीय कहकर व्याकरणीय कह दिया है / वाचस्पति मिश्र ने इस प्रश्न को समाहित एकान्ततः अवचनीय कहकर किया है जो कि उचित है। वाचस्पति मिश्र ने तत्त्ववैशारदी में ही एक प्रश्न समुपस्थित करके अवधनीय को समझाने का प्रयत्न किया है। यदि संसार आनन्त्य के कारण संसार के परिणाम की समाप्ति नहीं होगी तो महाप्रलय के समय सारी आत्माओं का सहसा समुच्छेद कैसे होगा तथा सष्टि की आदि में संसार कैसे उत्पन्न होगा? एक-एक करके सारी आत्माओं का मुक्ति-क्रम से सबका विमोक्ष होने से उच्छेद होगा तथा सबका संसार क्रम से प्रधान परिणाम-क्रम की समाप्ति हो जाने से प्रधान में अनित्यता का प्रश्न आयेगा। अपूर्व सत्त्व का प्रादुर्भाव तो होता नहीं है जिससे आनन्त्य तथा पुरुष का उत्पाद मानोगे तो वह आदि हो जायेगा / उसके अनादित्व का व्याघात होगा ऐसा होने से तो शास्त्रार्थ-भंग का प्रसंग होगा। पुरुष अनेक हैं प्रकृति एक है। एक पुरुष के मुक्त हो जाने से सारे ही पुरुषों के मोक्ष का प्रसंग होगा तथा यदि ऐसा कहें कि मुक्त की अपेक्षा तो प्रकृति अपरिणामी है संसारी की अपेक्षा परिणामी है तो एक ही प्रकृति में विरोध पैदा होगा अतः इस प्रकार के प्रश्न अवचनीय हैं। ये प्रश्न-उत्तर के योग्य नहीं हैं। भगवान् बुद्ध भी विभज्यवाद के प्रवक्ता थे। उन्होंने अनेक स्थानों पर विभज्यवाद
SR No.004411
Book TitleAarhati Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year1998
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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