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________________ समाज-व्यवस्था में अनेकान्त / 171 आसक्त नहीं होता है / वह हिताहित पर विचार करता है / अनेकान्ती मान्यता, परम्पराओं को छोड़ता नहीं है किन्तु उन पर विचार कर हेय उपादेय का विवेक करता है। किसी एक के साथ हठधर्मिता नहीं रखता। अनेकान्त में कट्टरता एवं सकीर्णता को कोई स्थान नहीं है। उसका दृष्टिकोण व्यापक है। अनेकान्ती अपना हित साधेगा किन्तु दूसरों का अहित करके नहीं। यदि उसकी कार्य-शैली से दूसरों का अहित हो रहा है तो वह अपनी कार्यशैली पर पुनर्चिन्तन करके परिवर्तन करेगा। अपने चिन्तन के प्रति राग एवं दूसरों के चिन्तन के प्रति द्वेष रखनेवाला कभी अनेकान्ती नहीं हो सकता। राग-द्वेष से जितनी मुक्ति होगी उतना ही व्यक्ति का चिन्तन अनेकान्ती एवं सम्यक् बनेगा। समाज के सन्दर्भ में अनेकान्त का अर्थ होगा अपने चिन्तन को हितकारी बनाना। समाज एवं व्यक्ति को साथ-साथ सुधारना। 'मैं कहता हूं सत्य वही है तू कहता है वह सत्य नहीं है।' यह विचारधारा समाज को अवनति के गर्त में ले जाती है। समाज का विकास अनेकान्ती विचार से ही हो सकता है।
SR No.004411
Book TitleAarhati Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year1998
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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