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________________ समाज-व्यवस्था में अनेकान्त / 169 जा रहा है। झूठ मत बोलो, झगड़ा मत करो, पढ़ाया जा रहा है किन्तु वातावरण में इससे विपरीत हो रहा है / जीवन-विज्ञान की शिक्षा पद्धति सर्वांगीण व्यक्तित्व निर्माण की प्रक्रिया है / आज की शिक्षा में शारीरिक, बौद्धिक विकास के सूत्रों को अनेकान्त नकारता नहीं है। किन्तु उसका दर्शन है इनके साथ मानसिक एवं भावनात्मक मूल्यों को भी जोड़ा जाये। वर्ण-व्यवस्था में अनेकान्त ___वर्ण-व्यवस्था भारतीय समाज की स्वीकृत सच्चाई है / आज इसका विकृत रूप हमारे सामने है। जन्मना जाति की व्यवस्था में ऊँच-नीच और छुआछूत की समस्या पैदा की / इस समस्या के द्वारा कितने अग्निकाण्ड हो चुके हैं। कितने निर्दोष बेगुनाह मौत की होली में जल चुके हैं। अनेकान्त के अनुसार, वर्ण-व्यवस्था गलत नहीं है। वर्ण-व्यवस्था तो समाज के श्रम का विभाजन है। आर्थिक क्षेत्र में जैसे-Division of labour होता है। श्रम-विभाजन की दृष्टि से यह व्यवस्था उचित है किन्तु जन्म के साथ जाति-व्यवस्था को जोड़कर भयंकर अनर्थ हुआ। अनेकान्त के अनुसार जन्म से नहीं कर्म से जाति-व्यवस्था हो / मनुष्य जन्म से नहीं कर्म से महान् बनता है / उत्तराध्ययन का उद्घोष है-कम्मुणा बम्हणो जाति तात्त्विक नहीं है किन्तु वह व्यवहार की उपयोगिता है / जाति के आधार पर मनुष्य छोटा-बड़ा नहीं हो सकता / 'एगा माणुसी जाई'। मनुष्य जाति एक है। यह प्राचीन आर्ष वाणी है। समाज में सब प्रकार की आवश्यकता होती है। व्यक्ति के भोजन, मकान आदि की प्राप्ति के साध्य समान है किन्तु उसकी पूर्ति के साधन भिन्न-भिन्न हैं / वे ही वर्ण-व्यवस्था के सूत्रधार हैं / विनोबा जी ने कहा—'समाज का विकास हाथ की पांच अंगुलियों की तरह हो / अनेकान्त के आलोक में वर्ण-व्यवस्था की समस्या का समाधान खोजा जा सकता है। परिवार में अनेकान्त परिवार समाज की मुख्य इकाई है। इसके आधार पर ही समाज का निर्माण होता है। परिवार में व्यक्ति अनेक सम्बन्धों से बंधा हुआ है। उन आपसी सम्बन्धों में यदा-कदा खींचातान चलती रहती हैं / जीवन और वातावरण अशान्त बन जाता है। यद्यपि आज ऐसे आन्दोलन चल रहे जो परिवार की अवधारणा को ही ठीक नहीं मानते हैं / मार्क्स ने कहा-abolish the famaly परिवार व्यवस्था को समाप्त करो क्योंकि परिवार ही शोषण का दुर्ग है / पाश्चात्य देशों में नारी स्वातंत्र्य के आन्दोलन पारिवारिक अवधारणा पर कुठाराघात कर रहे हैं। हमें इस सन्दर्भ में भी अनेकान्त
SR No.004411
Book TitleAarhati Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year1998
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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