________________ 168 / आर्हती-दृष्टि और अपना नहीं सके। चींटी की हिंसा, पानी की हिंसा तो उन्हें दिखाई दी किन्तु एक व्यक्ति के साथ भयंकर क्रूरता को हिंसा नहीं माना। झूठा तोल-माप न करना, मिलावट न करना, अशुद्ध साधनों से धनार्जन न करना उसके व्रत थे किन्तु उन सब को विस्मृत कर दिया। आज पुनः अपेक्षा है उस जीवन-शैली को व्यवहार्य बनाया जाये। श्रावक व्रतों पर आधारित समाज- व्यवस्था को स्वस्थ समाज की अभिधा. से अभिहित किया जा सकता है। राजनीति में अनेकान्त राजनीति समाज-व्यवस्था का महत्त्वपूर्ण घटक है। उसकी अदूरदर्शिता के परिणाम समाज को लम्बे समय तक भुगतने पड़ते हैं। राजनीति में विचारधाराओं में पक्ष प्रतिपक्ष होता है / वस्तु का अस्तित्व विरोधी धर्मों के बिना होता ही नहीं है / एक ही वस्तु में विरोधी-युगलों का रहना यह प्राकृतिक नियम है। आज जो शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व की बात कही जा रही है। वह अनेकान्त का ही सिद्धान्त है / जीवन की विभिन्न प्रणालियों में सह-अस्तित्व आवश्यक है / एक पूँजीवादी विचारधारा है, एक साम्यवादी है, एक एकतन्त्र की प्रणाली है, एक लोकतन्त्र की प्रणाली है। दोनों संसार में चल रही हैं और परस्पर विरोधी भी हैं / यदि इस भाषा में सोचा जाये कि दोनों में से एक रहेगा तो युद्ध के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं रहेगा। किन्तु आज एक ही संसद में अनेक विरोधी विचार वाले बैठते हैं / उनका सहअस्तित्व है / यह अनेकान्त . की ही अवधारणा है। शिक्षा जगत् में अनेकान्त शिक्षा बिम्ब है, समाज उसका प्रतिबिम्ब है। समाज को बदलने का एक महत्त्वपूर्ण साधन बनती है-शिक्षा। शिक्षा के द्वारा विद्यार्थी में बीज वपन होता है। शिक्षा हितकारी, कार्यकारी होगी तो समाज भी बदलेगा। स्वामी विवेकानन्द एवं महात्मा गांधी ने भी शिक्षा का उद्देश्य चरित्र-निर्माण माना है। आज की शिक्षा अपने इस उद्देश्य की सम्पूर्ति में असहाय एवं अक्षम है / आज शिक्षा के द्वारा व्यक्ति का शारीरिक एवं बौद्धिक विकास तो बहुत किया जा रहा है किन्तु मानसिक एवं भावनात्मक विकास के पक्ष को सर्वथा उपेक्षित कर दिया गया है। शिक्षा मूल्य विहीन हो गई है। स्वयं मार्ग से अनजान व्यक्ति दूसरे का मार्ग-दर्शक नहीं बन सकता / आज शिक्षा की वैसी ही स्थिति बन रही है। अन्धा आंखवाले को रास्ता बता रहा है। आज की शिक्षा में मूल्य प्रशिक्षण का उपक्रम आवश्यक है / आज का जीवन मूल्यों से विपरीत दिशा में