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________________ समाज-व्यवस्था में अनेकान्त / 167 मनुष्य के लिए है, मनुष्य यन्त्र के लिए नहीं है। आज प्रौद्योगिकी के अत्यधिक विकास के कारण पर्यावरण प्रदूषण का खतरा भयावह संकट पैदा कर चुका है। ओजोन की छतरी में छेद हमारी सुरक्षा व्यवस्था में छेद है। अनावश्यक यन्त्रीकरण ने समस्या को पैदा किया है। आधुनिक वातावरण के प्रति जागरूक लेखकों ने भविष्य के संकट को सामने रखकर अगाह किया है। Toffler अपनी पुस्तक 'Future shock' में अति यान्त्रिक विकास और अति प्राद्यौगिकी के भयावह परिणामों से आगाह करते हुए निष्कर्ष प्रस्तुत करते हैं- भविष्य के भयंकर खतरों के निरोध के लिए हमें परम औद्योगिक समाज के नियोजन में मानवता के पक्ष को केन्द्र में रखना होगा। हमारे राजनैतिक ढाँचों में भी नियोजन का यह मानवीकरण प्रतिबिम्बित होना चाहिए'। सारांश यह है कि समूची अर्थव्यवस्था, राजनैतिक एवं समाजतन्त्र यदि केवल प्राद्योगिकी या एकांकी भौतिक उपलब्धियों के आधार पर खड़े किए जाएंगे तो सर्वविनाश के सिवाय और कोई चारा नहीं है। आज के समाजशास्त्रियों एवं अर्थशास्त्रियों ने कृत्रिम भूख को बढ़ाकर पूरे मानव समाज को संकट में डाल दिया है / आवश्यकताओं की पूर्ति को उचित माना जा सकता है किन्तु कृत्रिम क्षुधा की शान्ति होना असम्भव है। कहा गया है तन की तृष्णा तनिक है तीन पाव के सैर। मन की तृष्णा अमित है गिलै मेर का मेर।। ____ मानव ने अपनी तृष्णा शान्ति के लिए प्रकृति का अंधाधुंध दोहन किया है। आगे आनेवाली पीढ़ियों के अधिकार को छीन लिया है। पर्यावरण के सन्तुलन के सन्दर्भ में भगवान् महावीर द्वारा प्रदत्त अनर्थ-दण्ड विरति व्रत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आवश्यक हिंसा को छोड़ा नहीं जा सकता है किन्तु अनावश्यक को रोका जा सकता है। प्रयोग परीक्षा के नाम पर लाखों मासूम जानवरों की हत्या प्रकृति के साथ क्रूर खिलवाड़ है। पर्यावरण की ऐसी समस्या को देखकर कुछ विचारक यह सुझाव देते हैं कि मानव को पुनः गुफा संस्कृति में चले जाना चाहिए। किन्तु यह दृष्टिकोण भी व्यवहार्य नहीं है / अनेकान्त का चिन्तन है कि यन्त्रों का भी नियन्त्रित विकास हो जिससे सन्तुलन बना रहे। 15 कर्मादान, 25 क्रियाएँ ये पर्यावरण सुरक्षा के सूत्र हैं। ___ जैन श्रावक की आचारसंहिता को गहराई से देखा जाये तो वह अनेकान्त जीवन-शैली की जीवनचर्या है। पर दुर्भाग्य से जैन लोग भी उसे समझ नहीं सके
SR No.004411
Book TitleAarhati Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangalpragyashreeji Samni
PublisherAdarsh Sahitya Sangh Prakashan
Publication Year1998
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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